manoj joshi interview recalls asrani unique acting | ‘असरानी डायलॉग रटते नहीं थे, बल्कि लिखकर याद करते थे’: मनोज जोशी ने बताया क्यों उनके अभिनय का तरीका अनोखा था

manoj joshi interview recalls asrani unique acting | ‘असरानी डायलॉग रटते नहीं थे, बल्कि लिखकर याद करते थे’: मनोज जोशी ने बताया क्यों उनके अभिनय का तरीका अनोखा था


12 मिनट पहलेलेखक: अमित कर्ण

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बॉलीवुड एक्टर असरानी का सोमवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। पांच दशकों से अधिक लंबे करियर में असरानी ने 350 से ज्यादा फिल्मों में काम किया था। असरानी के साथ कई फिल्मों में काम कर चुके एक्टर मनोज जोशी ने दैनिक भास्कर से बात करते हुए उन्हें याद किया और उनके बारे में कई बातें शेयर कीं।

मनोज जोशी ने कहा कि असरानी… इस नाम में एक अनुशासन था, एक अद्भुत ऊर्जा थी और एक विनम्रता थी जो आज के समय में विरले ही देखने को मिलती है। उनके अभिनय और उनके व्यक्तित्व का जादू वाकई अद्भुत था। मैं उन्हें एक अभिनेता से ज्यादा एक गुरु और एक ‘लीजेंड’ मानता हूं और मेरे इस मत के पीछे उनके साथ बिताए करीब 10 फिल्मों का अनुभव है, जिनमें प्रियदर्शन की कई सफल फिल्में शामिल हैं।

अभिनय का अनोखा शिष्य भाव

मनोज जोशी ने बताया कि असरानी जी का अभिनय का तरीका अनोखा था। वह अपने डायलॉग्स को कभी रटते नहीं थे, बल्कि उन्हें अपने हाथ से लिखते थे। जब मैंने पूछा कि आप ऐसा क्यों करते हैं, तो बोले- ‘लिखने से शब्द अपने ‘स्वरूप’ में याद रह जाते हैं।’ आप सोचिए, यह अपने काम के प्रति कैसा समर्पण है।

उनके पास फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) की डिग्री थी, वह वहां टीचर रहे थे, उन्होंने उस दौर के बड़े-बड़े कलाकारों को पढ़ाया था, फिर भी उनका एप्रोच कभी यह नहीं होता था कि ‘मुझे बहुत आता है’। वह हमेशा एक नए व्यक्ति की तरह पूरी शिद्दत और अनुशासन से काम करते थे। यह विनम्रता ही उन्हें महान बनाती थी।

मनोज जोशी और असरानी ने कई फिल्मों में साथ काम किया है, जिनमें भूल भुलैया (2007) और चुप चुप के (2006) भी शामिल हैं।

मनोज जोशी और असरानी ने कई फिल्मों में साथ काम किया है, जिनमें भूल भुलैया (2007) और चुप चुप के (2006) भी शामिल हैं।

बेजोड़ ऊर्जा और सेट पर टाइमिंग के पक्के

मनोज जोशी ने बताया कि वह सचमुच डिसिप्लिन एक्टर थे। इस उम्र में भी उनमें इतनी ऊर्जा थी कि युवा कलाकारों को आश्चर्य होता था। वह सुबह 5 बजे चलने (वॉकिंग) के लिए जाते थे। उनकी यह ऊर्जा अंतिम समय तक बनी रही, जब वह अपनी जिंदगी के आखिरी पल तक काम करते रहे।

सेट पर उनकी टाइमिंग बेमिसाल थी। वह हमेशा समय के पाबंद थे। जब असिस्टेंट उन्हें बुलाने जाता, तो वह तुरंत तैयार होकर आ जाते थे, भले ही दूसरे एक्टर्स न आए हों। वह इतने सीनियर होने के बावजूद भी, दूसरों का बहुत ख्याल रखते थे। लंच ब्रेक में भी वह पूछते थे कि “जरा पूछ लो, हम लोग खाना खा लें।” अपनी वजह से किसी को कोई तकलीफ न हो, यह उनकी पहली प्राथमिकता थी।

असरानी की एक्टिंग स्किल्स पर बात करते हुए मनोज जोशी ने बताया कि असरानी साहब में अभिनय के लिए जरूरी सारे गुण मौजूद थे: जबरदस्त इम्प्रोवाइजेशन, टाइमिंग और उनका शानदार प्रेजेंस ऑफ मांइड।

उनकी विनोद बुद्धि और चीजों को बारीकी से ऑब्जर्व करने की क्षमता शानदार थी। आम बातचीत में भी वह लोगों का ऐसा ‘कैरेक्टर स्केच’ करते थे, जो बहुत सूक्ष्म और खतरनाक होता था।

उनकी कॉमेडी का सेंस ऐसा था कि मैं उन्हें कॉमेडी का ‘सूर्य प्रकाश’ कहता हूं। सेट पर वह सीन के अलावा भी अपनी हाजिरजवाबी से लोगों को हंसाते थे। उनकी एक ‘जिबरिश’ भाषा थी, जिसमें हिंदी के साथ कुछ अटपटे शब्द जोड़कर बोलते थे, यह भी लोगों को बहुत गुदगुदाता था। हमने उनके साथ बहुत धमाल किया, बहुत कुछ सीखा है।

‘शोले’ का हिटलर कनेक्शन

मनोज जोशी ने बताया कि असरानी ने उन्हें कई अनसुने किस्से सुनाए। जैसे, ‘शोले’ में उनका गेटअप और बोलने का खास अंदाज एडोल्फ हिटलर पर एक व्यंग्य करने के लिए लिखा गया था। उनका लड़खड़ाना और खास पिच में बोलना भी स्क्रिप्ट का हिस्सा था।

उन्होंने बताया था कि ‘शोले’ शुरुआती एक हफ्ते तक पिक-अप नहीं हुई थी। फिर अचानक कहीं बाहर एक चाय की दुकान पर रेडियो पर जब डायलॉग्स सुने, तब पता चला कि अब चलनी शुरू हुई है। और उसके दो हफ्ते बाद तो वह आज तक एक ‘लीजेंडरी फिल्म’ बनी हुई है।

असरानी जी ने ऋषिकेश मुखर्जी (ऋषि दा) और बासु चटर्जी (बसु दा) जैसे ‘जाइंट’ डायरेक्टरों के साथ काम किया। वह बताते थे कि ऋषि दा के सामने तो कोई आवा भी नहीं करता था। ‘अभिमान’ में उनका रोल कितना शानदार था!

‘ब्लैक एंड व्हाइट’ से वर्तमान तक का लीजेंड

मनोज जोशी ने बताया कि मैंने उनके साथ ‘भूल भुलैया’ और ‘चुप चुप के’ जैसी फिल्मों में काम किया। ‘कुश्ती’ फिल्म की शूटिंग में कड़ी धूप में भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि इतने सीनियर होने के बावजूद भी उनमें “कोई आडंबर, अहंकार लेश मात्र नहीं था।” उनका ऑरा बहुत शानदार था।

वह बहुत पढ़ते थे, सुबह-शाम योग करते थे और आध्यात्मिक चिंतन भी करते थे। वह एक गहरे चिंतक थे। उनका महत्व इसलिए भी बड़ा है क्योंकि वह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के जमाने से लेकर वर्तमान तक सक्रिय रहे। यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है।

हम कलाकार हमेशा उनसे बात करने और सीखने के मौके की तलाश में रहते थे। असरानी साहब जैसे ‘लीजेंड’ से हर अभिनेता को एक शिष्य की तरह सीखने को मिलता है—चाहे वह अभिनय हो या कैरेक्टर स्टडी।

उन्होंने मुझे 1980 के दशक की शुरुआत में ‘आगाज’ फिल्म में भी साथ काम करने का मौका दिया था। असरानी सर मनस्वी थे और उनके साथ बिताया गया वक्त बहुत अच्छा रहा। उनकी यादें बहुत अच्छी हैं, और वह इंडस्ट्री के ऐसे किस्से सुनाते थे कि पूरा का पूरा कैरेक्टर आपके सामने जीवंत हो उठता था। वह वाकई में लीजेंड थे। उन्हें कोई नकार नहीं सकता।

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