गुरुवार को अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दोस्ती को लेकर शहद में डूबी बातें कहीं. उन्होंने खुद को ‘भारत के करीब’ बताया. खुद को ‘भारत के पीएम के नजदीक’ बताया. PM मोदी के साथ अपने रिश्तों को ‘बहुत अच्छा’ बताया. लगभग इसी समय अमेरिका ने भारत को झटका देते हुए ईरान के रणनीतिक चाबहार पोर्ट पर 2018 में दी गई प्रतिबंधों से छूट को रद्द कर दिया.
इस छूट के तहत भारतीय कंपनियों को चाबहार पोर्ट में काम करने की अनुमति मिल गई थी और ये कंपनियां अमेरिकी प्रतिबंधों की जद में नहीं आती थी. लेकिन इस प्रतिबंध के हटने से यहां काम कर रही भारतीय कंपनियों को सीधे सीधे अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा.
भारत ईरान स्थित इस पोर्ट को विकसित कर रहा है. यह पोर्ट भारत के लिए मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक व्यापार और कनेक्टिविटी के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है.
यही सवाल आता है भारत के खिलाफ ट्रंप के डबल गेम का. ट्रंप भारत-अमेरिका रिश्तों को दुनिया की सबसे मज़बूत साझेदारी करार देते हैं. लेकिन दूसरी ओर कठोर आर्थिक और कूटनीतिक कदमों से भारत को दबाव में भी लाने की कोशिश करते हैं.
ट्रंप का यही विरोधाभास आज न सिर्फ भारतीय रणनीतिक हलकों में बल्कि आम जनमानस में भी गहराई से चर्चा का विषय बनी हुई है. सवाल यह है कि क्या ट्रंप वास्तव में भारत के साथ खड़े हैं या केवल अपना स्वार्थ साध रहे हैं. क्या ट्रंप विश्व पटल पर भारत की एक स्वतंत्र सत्ता के रूप में अंगडाई से असहज महसूस कर रहे हैं. क्या अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान ताकतवर भारत का स्वीकार नहीं कर पाता है इसलिए आर्थिक और कूटनीतिक कदमों से भारत को दबाने की कोशिश करता है.
चापलूसी दोस्ती नहीं है
रक्षा एक्सपर्ट डॉक्टर ब्रह्म चेलानी ट्रंप के इस डबल गेम की पोल खोलते हुए एक्स पर लिखते हैं, “ट्रंप की भारत नीति स्पष्ट होती जा रही है, मोदी की लगातार प्रशंसा करते हुए उन पर शिकंजा कसते रहो. मोदी को “महान”, “बहुत करीबी दोस्त” और “बहुत बढ़िया काम कर रहे हैं” कहना ट्रंप की कड़वी बातों पर मीठा पर्दा डालने जैसा है.”
Trump’s India playbook is becoming clearer: smother Modi with continuing praise while tightening the vise on India. Calling Modi “great,” a “very close friend” and “doing a tremendous job” is Trump’s sugarcoating for bitter pills — from making India the first and only target of…
— Dr. Brahma Chellaney (@Chellaney) September 19, 2025
ब्रह्म चेलानी ने कहा ने कहा रूस से कच्चा तेल खरीदने के लिए दूसरे चरण के प्रतिबंधों में सिर्फ भारत पर प्रतिबंध लगाना और जो चाबहार भारत के लिए ग्वादर का काउंटर था उस पर मिले छूट को खत्म कर देना अमेरिका की नीति को स्पष्ट कर देता है.
उन्होंने कहा कि ट्रंप की ‘द आर्ट ऑफ द डील’में चापलूसी दोस्ती नहीं है- यह लोहे की मुट्ठी पर मखमली दस्ताना है.
राजनीतिक मंच पर ट्रंप ने कई बार भारत को ‘मजबूत साझेदार’ बताया, लेकिन वास्तविक नीति में वे ‘अमेरिका फर्स्ट’ के कठोर पैमाने से ही चलते रहे. अमेरिका ने जब भारत पर टैरिफ बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया तो भारत अपनी विदेश नीति की स्वायत्तता दिखाते हुए चीन की अगुआई वाले SCO की बैठक में एक स्वावलंबी देश की तरह पहुंचा. यहां से आई तस्वीरों ने ट्रंप को परेशान कर दिया और वे यह कहने को मजबूर हुए कि मैंने भारत-रूस को चीन के हाथों में खो दिया.
कॉस्मेटिक एप्रोच, ठोस भावना
लेकिन भारत से रिश्ते सुधारने के ट्रंप के एप्रोच कॉस्मेटिक ही रहे, इसमें ठोस भावना नहीं थी. यही वजह रही कि लगभग इसी दौरान ट्रंप के सलाहकार पीटर नवारो, अमेरिकी वाणिज्य मंत्री स्कॉट बेसेंट भारत के खिलाफ बयान देते रहे और रूसी तेल की खरीद बंद करने के लिए भारत पर दबाव बनाते रहे.
इसी दौरान अमेरिका ने भारत के साथ रक्षा व्यापार में कीमतें बढ़ा दी, अमेरिकी बाजार में भारत की पहुंच को सीमित कर दिया और वीजा नियमों को कठोर बना दिया. दरअसल भारत-अमेरिका रिश्तों का जो चमकदार चेहरा ट्रंप ने प्रस्तुत किया, उसके भीतर प्रबल अमेरिकी महत्वाकांक्षा, व्यापारिक झगड़े और रणनीतिक दबाव की सच्चाई छिपी रही.
वहीं अमेरिका के साथ टकराव में भारत धैर्य से काम ले रहा है. भारत ने साफ किया है कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा. विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत सस्ता तेल जहां से मिलेगा, खरीदेगा. साथ ही भारत जवाबी टैरिफ लगाने से बच रहा है क्योंकि अमेरिका भारत के साथ तनाव बढ़ाना नहीं चाहता है.
एयरफोर्स वन में ट्रंप ने जब पीएम नरेंद्र मोदी को अपना दोस्त बताया तो साथ साथ यह भी कहा कि भारत ने लगभग किसी भी देश की तुलना में अमेरिका पर ज्यादा टैरिफ लगाया है. लेकिन अब मैं जिम्मेदारी संभाल रहा हूं और ऐसा अब नहीं चल सकता.
भारत जैसे देश के लिए यह संदेश साफ है कि ट्रंप का रवैया दोस्ताना कम और व्यापारिक अधिक है. इसे अवसरवादी भी कहा जा सकता है. ट्रंप भारत को अपनी वैश्विक रणनीति में एक मोहरे की तरह इस्तेमाल करना चाहते है. वे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चीन का उभार संतुलित करने के लिए भारत के कंधे पर बंदूक रखकर चलाना चाहते हैं लेकिन ट्रंप भारत को वास्तविक साझेदार का दर्जा नहीं देना चाहते हैं.
—- समाप्त —-