
दरअसल, किसी भी नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम को तकनीकी भाषा में GNSS यानी ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम कहा जाता है. यह कई सैटेलाइट्स का नेटवर्क होता है जो लगातार पृथ्वी पर सिग्नल भेजते हैं. हमारे फोन या कार में मौजूद रिसीवर इन सिग्नलों को पकड़कर हमारी सटीक लोकेशन बता देते हैं. इस काम के लिए कम से कम चार सैटेलाइट्स का सिग्नल जरूरी होता है.

दुनिया का सबसे पुराना और सबसे लोकप्रिय सिस्टम GPS है जिसे अमेरिका ने विकसित किया था. इसके पास 24 से ज्यादा सैटेलाइट्स हैं जो धरती से करीब 20,200 किलोमीटर की ऊंचाई पर घूमते हैं. स्मार्टफोन और गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाला ज्यादातर नेविगेशन इसी पर आधारित है.

रूस का GLONASS सिस्टम भी काफी पुराना है और 1980 के दशक से काम कर रहा है. इसमें भी 24 सैटेलाइट्स हैं और कुछ क्षेत्रों में यह GPS से भी बेहतर साबित होता है.

चीन का BeiDou सिस्टम पहले केवल क्षेत्रीय स्तर पर काम करता था लेकिन अब यह पूरी दुनिया को कवर करता है और इसके पास 35 से ज्यादा सैटेलाइट्स हैं.

यूरोपियन यूनियन का Galileo सिस्टम खास तौर पर अपनी हाई-एक्यूरेसी के लिए जाना जाता है. इसमें 28 से ज्यादा सैटेलाइट्स हैं और इसे खासकर नागरिक उपयोग के लिए बनाया गया है.

भारत भी इस दौड़ में पीछे नहीं है. ISRO ने NavIC नाम से अपना खुद का नेविगेशन सिस्टम तैयार किया है. इसमें 7 सैटेलाइट्स शामिल हैं और यह भारत तथा इसके आसपास के इलाकों में बेहद सटीक लोकेशन डेटा देता है. इसे 2013 में लॉन्च किया गया था और सुरक्षा के लिहाज से यह भारत के लिए बेहद अहम है.

जापान के पास QZSS सिस्टम है जिसे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए डिजाइन किया गया है. यह GPS के साथ मिलकर काम करता है और खास तौर पर उन इलाकों में उपयोगी है जहां GPS सिग्नल कमजोर पड़ जाता है.

यानी साफ है कि पूरी दुनिया महज अमेरिका के GPS पर नहीं चलती बल्कि कुल छह देशों और समूहों ने अपनी तकनीक के दम पर अपना नेविगेशन सिस्टम खड़ा किया है. यह न केवल उनकी सुरक्षा के लिए अहम है बल्कि तकनीकी स्वतंत्रता और रणनीतिक बढ़त के लिए भी बेहद जरूरी है.
Published at : 24 Sep 2025 03:42 PM (IST)