Belpatra worship: भारत की आध्यात्मिक परंपराएं केवल अनुष्ठानों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनके पीछे गहरे प्रतीक, दार्शनिक संदेश और व्यावहारिक लाभ छिपे रहते हैं. शारदीय नवरात्र इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. नवरात्र की षष्ठी तिथि से दशमी तक बेलपत्र का पूजन इसी संयुक्त साधना का अद्भुत प्रमाण है.
हिंदू धर्मग्रंथों में बेल वृक्ष को साधारण पेड़ नहीं, बल्कि दिव्य शक्ति का अवतार माना गया है. देवीभागवत पुराण और शिवपुराण में वर्णन है कि, इस वृक्ष में संपूर्ण शक्तियों का वास है, जड़ों में गिरिजा, तने में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी, फलों में कात्यायनी वास करती हैं.
यहां तक कि बेल वृक्ष के कांटों को भी शक्तियों का रूप माना गया है. इसीलिए नवरात्र के समय बेल को केवल पौधा नहीं, बल्कि मां शक्ति का जीवंत रूप समझकर निमंत्रित किया जाता है.
षष्ठी से दशमी तक का अनुष्ठान
शारदीय नवरात्र की षष्ठी तिथि से जुड़ी एक विशेष परंपरा है. इस दिन भक्तजन गाजे-बाजे और शोभायात्रा के साथ बेल वृक्ष तक पहुंचते हैं. वहां वे विशेष विधि-विधान से बेल को पूजते हैं और जुड़वां फल को देवी को अर्पित करने के लिए निमंत्रण देते हैं.
अगले दिन, अर्थात् सप्तमी को, वही बेल मंदिर में लाकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. इसके बाद विजयादशमी तक शिव और शक्ति के साथ उसकी संयुक्त पूजा की जाती है. यह प्रक्रिया केवल धार्मिक कृत्य नहीं, बल्कि एक जीवंत प्रतीक है कि नवरात्र में शिव और शक्ति अविभाज्य रूप से एक साथ पूजे जाते हैं.
बेल और शिव-शक्ति का सेतु
बेलपत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है. शिवलिंग पर बेल चढ़ाने का विधान हर दिन प्रचलित है, लेकिन नवरात्र में इसका महत्व और बढ़ जाता है. क्योंकि यह काल शक्ति की साधना का होता है, और शिव के बिना शक्ति अधूरी है. इसीलिए नवरात्र में बेल को अर्पित करना वास्तव में शिव और शक्ति दोनों की आराधना का सेतु बन जाता है.
समृद्धि और लक्ष्मी का वास
बेल को केवल शक्ति और शिव का प्रतीक नहीं, बल्कि लक्ष्मी का वास स्थल भी कहा गया है. मान्यता है कि नवरात्र में बेलपत्र चढ़ाने से घर में मां लक्ष्मी का स्थायी वास होता है. धन और संपत्ति की कमी नहीं रहती.
परिवार में समृद्धि और सुख-शांति का संचार होता है. यही कारण है कि बेल वृक्ष को प्राचीन काल से ही संपत्ति का प्रतीक माना गया है. पहले जहां इसके फल को “श्रीफल” का दर्जा दिया गया था, वहीं कालांतर में यह स्थान नारियल ने ग्रहण कर लिया.
पापमोचन और मोक्ष की प्राप्ति
शिवपुराण और देवी भागवत दोनों ही यह स्पष्ट करते हैं कि बेलपत्र चढ़ाने वाला भक्त कभी दुखी नहीं होता. शिवलिंग पर बेल चढ़ाने से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं. मां भगवती को बेलपत्र अर्पित करने से साधक को सिद्धियां प्राप्त होती हैं.
अंततः भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है. अर्थात् नवरात्र में बेल की पूजा केवल सांसारिक फल ही नहीं देती, बल्कि यह आध्यात्मिक मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करती है.
विज्ञान भी मानता है इसका महत्व
धर्मग्रंथों में बेल को शक्ति का प्रतीक बताया गया है, वहीं आधुनिक विज्ञान इसे औषधीय दृष्टि से अनमोल मानता है. बेल का शर्बत हृदय रोगियों के लिए रामबाण है. इसकी ठंडी तासीर शरीर को संतुलित करती है और गर्मी से बचाती है.
बेल के फल और पत्तियों में कैल्शियम, पोटैशियम, लोह और मैग्नीशियम जैसे तत्व पाए जाते हैं, जो पाचन तंत्र और संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं. इसका उपयोग शरबत, मुरब्बा, चटनी और औषधियों के रूप में आज भी व्यापक है.
इस प्रकार नवरात्र में बेल की पूजा का एक वैज्ञानिक पक्ष भी है. यह न केवल आत्मा को शांति देती है, बल्कि शरीर को भी स्वस्थ बनाती है.
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