11th Sharif 2025: ग्यारहवीं शरीफ एक सूफी मुस्लिम परंपरा है, जो महान सूफी संत हजरत अब्दुल कादिर जिलानी के जीवन और शिक्षाओं का सम्मान करती है, जो प्रत्येक वर्ष इस्लामी चंद्र कैलेंडर के रबी-उस-सानी महीने की 11वीं तारीख को मनाया जाता है.
इस दिन, अनुयायी दुआ करते हैं, कुरान पढ़ते हैं और पवित्र भोजन बांटते हैं, जो संत के लिए सदका (दान) होता है, उनके निधन की पुण्यतिथि के रूप में.
ग्यारहवीं शरीफ 2025 में कब है?
2025 में ग्यारहवीं शरीफ, रबी-उस-सानी (रबी-उल-सानी) महीने की 11वीं तारीख को मनाया जाएगा, जो कैलेंडर के अनुसार साल 2025 में 3 नवंबर 2025 को पड़ रहा है. यह हजरत अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्लाह की पुण्यतिथि का दिन है, जिसे उनके अनुयायी फातिहा ख्वानी कर मनाते हैं.
ग्यारहवीं शरीफ की हकीकत
ग्यारहवीं शरीफ हजरत अब्दुल कादिर जिलानी की याद में मनाया जाने वाला एक इस्लामी सूफी त्योहार है, जिसमें लोग उनके नाम से फातिहा ख्वानी करते हैं. इस दिन इसाले सवाब के लिए विशेष प्रार्थनाएं की जाती हैं और पवित्र भोजन का वितरण होता है.
- इसाले-सवाब: यह हजरत अब्दुल कादिर जिलानी की रूह के लिए ‘इसाले-सवाब’ है, जिसका अर्थ है किसी मृत व्यक्ति के लिए सवाब भेंट करना.
- सूफी परंपरा: यह मुख्य रूप से सूफी मुसलमानों द्वारा मनाई जाती है, जो हजरत अब्दुल कादिर जिलानी को सूफीवाद के संस्थापकों में से एक मानते हैं.
- आध्यात्मिक आयोजन: यह प्रार्थना करने और पवित्र भोजन साझा करने का एक महत्वपूर्ण समय है, जो संत की शिक्षाओं का सम्मान करने का एक तरीका है.
- सांस्कृतिक पहलू: यह एक सांस्कृतिक परंपरा है, जिसमें पारंपरिक मुस्लिम प्रथाओं जैसे नमाज और कुरान की तिलावत शामिल होती है.
ग्यारहवीं शरीफ क्यों मनाते हैं?
ग्यारहवीं शरीफ हजरत अब्दुल कादिर जिलानी की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में मनाई जाती है, जिन्हें सूफीवाद का संस्थापक और “गौस-ए-आजम” भी कहा जाता है. इस दिन को उनके जीवन और शिक्षाओं का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है.
जिसमें प्रार्थना, फातिहा ख्वानी, धार्मिक सभाएं और सूफी कलाम का पाठ शामिल होता है. यह इस्लामिक कैलेंडर के रबी-उस-सानी महीने की 11वीं तारीख को आयोजित होता है.
ग्यारहवीं शरीफ मनाने के मुख्य कारण-
- हजरत अब्दुल कादिर जिलानी को सम्मान: यह दिन सूफी संत हजरत अब्दुल कादिर जिलानी के जीवन और शिक्षाओं को याद करने और उनका सम्मान करने के लिए मनाया जाता है.
- अल्लाह से जुड़ाव: इस दिन को अल्लाह के मिलन की सालगिरह के रूप में मनाया जाता है, जहां लोग अल्लाह से प्रार्थना और दुआ मांगते हैं.
- इसाले-सवाब: ग्यारहवीं शरीफ को “इसाले-सवाब” के रूप में मनाया जाता है, जिसका अर्थ है मृतक की आत्माओं के लिए पुण्य कमाने और दुआ मांगना.
- सामुदायिक भावना: इस अवसर पर धार्मिक बैठकों और कव्वाली की महफिलों का आयोजन किया जाता है, जहां लोग एक साथ मिलकर सूफी कलाम का आनंद लेते हैं और ईश्वर से जुड़ाव महसूस करते हैं.
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