12 मिनट पहलेलेखक: अमित कर्ण
- कॉपी लिंक

बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन आज 83 वर्ष के हो गए हैं। इस खास मौके पर दिग्गज फिल्म निर्माता-निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने दैनिक भास्कर से विशेष बातचीत की और अपनी उनसे पहली मुलाकात का किस्सा भी शेयर किया।
पहली मुलाकात और ‘छह इंच का पर्दा’
मुझे आज भी वह दिन याद है जब मेरी और अमिताभ बच्चन जी की पहली मुलाकात तय हुई। यह एबी कॉर्प (AB Corp) के शुरुआती समय की बात है। एक एडवरटाइजिंग एजेंसी मेरे पास आई और बताया कि एक ऐड बनाना है, जिसमें एक बहुत बड़ी हस्ती होंगी। कुछ दिनों की जद्दोजहद के बाद उन्होंने बताया कि वह हस्ती और कोई नहीं, बल्कि स्वयं अमिताभ बच्चन जी हैं। उस समय की सबसे खास बात यह थी कि अमिताभ जी ने तब तक कोई भी ऐड फिल्म नहीं की थी, खासकर टीवी पर तो वह बिल्कुल नहीं आए थे।
अगले दिन मैं उनसे मिलने गया। उनकी वेशभूषा मुझे आज भी याद है ब्लू जीन्स, ब्लू डेनिम टी-शर्ट और एक बेसबॉल कैप। हम एबी कॉर्प के दफ्तर में मिले। उन्होंने सहजता से हाथ मिलाया और कहा, हेलो, आई एम अमिताभ बच्चन। मैंने जवाब दिया, आई एम राकेश नेहरा सर। बस, यहीं से हमारी पांच ऐड फिल्मों की एक सीरीज की स्क्रिप्ट पर चर्चा शुरू हुई।
चर्चा के दौरान मैंने उनसे एक दिलचस्प बात कही। मैंने कहा, सर, आज तक हमने आपको 60 फीट के पर्दे पर देखा है, जहां आप हमें हिप्नोटाइज करके रखते हैं। लेकिन जब आप टीवी पर आ जाएंगे, तो छह इंच के हो जाएंगे और मेरे हाथ में रिमोट होगा, मैं इसके बाद किसी और चैनल पर रहूंगा। वह हंस पड़े और हंसकर बोले, राकेश, ये आने वाले दिनों की सच्चाई है। यह उनकी अद्भुत दूरदर्शिता थी कि उन्होंने उस समय में भी टीवी की शक्ति को पहचान लिया था।
अमिताभ जी ने इस पहली ऐड फिल्म के लिए सहमति इसलिए दी क्योंकि उस समय फिल्म मेकिंग में कोई कॉर्पोरेट नहीं था और एबी कॉर्प की शुरुआत उन्हीं ने की थी। मैंने उन्हें बताया कि उनके फैंस को लग सकता है कि इतनी बड़ी शख्सियत ऐड क्यों कर रही है। इसलिए, स्क्रिप्ट में ही अमिताभ जी ने इस सवाल का जवाब दिया। वह खुद स्क्रीन पर आते हैं और कहते हैं कि शायद आप मुझे टीवी पर देखकर हैरान होंगे सोचा कि भाई फिल्मों में एक्टिंग की है, थिएटर में नाटक प्ले भी किए हैं, टूटे-फूटे गाने भी गाए हैं, ये भी करके देख लेते हैं।

म्यूजिक वीडियो का अनूठा सफर
उस ऐड सीरीज के बाद हमारी जिंदगी का रुख बदल गया। हमने उनके साथ कई और विज्ञापन फिल्में बनाईं, जिनमें कई तरह की चीजों के लिए ऐड शामिल थीं। कुछ समय बाद उन्होंने मुझे घर बुलाया और कुछ गाने सुनाए। वह एलबम थी एबी बेग, जिसमें उन्होंने बाबूजी (हरिवंश राय बच्चन जी) की कविताओं पर गाने गाए थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि मुझे कौन से गाने पसंद हैं और उनका म्यूजिक वीडियो बनाना है। मैंने साहिर लुधियानवी की कविता ‘कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है’ (जो ओरिजिनल थी, फिल्म वाली नहीं) और बाबूजी की कविता ‘ईर बीर, फते’ को चुना। अमिताभ जी ने भी बताया कि ये उनके फेवरेट हैं।
म्यूजिक वीडियो डायरेक्ट करने के लिए मुझे चुनना एक संयोग था। उस समय मैं लंदन में एडिटिंग कर रहा था और अमिताभ जी भी वहीं थे। स्टूडियो में काम करते हुए उन्होंने अचानक कहा, तुम ही क्यों नहीं डायरेक्ट कर लेते? मैंने मना किया कि मैं तो ऐड डायरेक्टर हूं और माइकल जैक्सन के डायरेक्टर जैसे बड़े-बड़े लोग वीडियो बनाने को तैयार हैं। लेकिन उनका जवाब निर्णायक था नहीं, तुम्हें कहानी समझ में आई है। दिल हिंदुस्तानी होना चाहिए, कविता हिंदुस्तानी है। इस तरह मैंने वो दो म्यूजिक वीडियो डायरेक्ट किए।
एक दिन मैं अभिषेक बच्चन के साथ बैठा था और उनके फिल्मों में आने के बारे में एक कहानी डिस्कस कर रहा था। इत्तफाक से मेरे बैग में उस समय 25 पन्नों की कहानी थी। अमिताभ जी कमरे में आए और मैंने उनसे कहा अमित जी, ये पढ़ लें जरा फ्लाइट एंटरटेनमेंट। वह रात की फ्लाइट से दिल्ली जा रहे थे। फ्लाइट के टेक-ऑफ होते ही, रात साढ़े ग्यारह बजे के करीब, मुझे उनका फोन आया और उन्होंने दबी आवाज में पूछा, ये क्या पीके लिखा था तुमने क्या हुआ?
‘अक्स’ और डायरेक्टर के तौर पर मेरा जन्म
अगली ही रात को उनका फिर फोन आया और उन्होंने कहा लेट्स डू इट। उनके ये तीन शब्द चलो करते हैं आज भी मुझे याद हैं। इस तरह मेरी पहली फीचर फिल्म ‘अक्स’ अमिताभ बच्चन जी के साथ शुरू हुई। यह 1998-99 की बात है। मैं बहुत नर्वस था क्योंकि मैंने पहले कभी फीचर फिल्म नहीं बनाई थी। फिल्म में मनोज बाजपेयी और रवीना टंडन भी थे।
फिल्म बॉक्स ऑफिस पर उतनी नहीं चली पर क्रिटिकली इसने बड़ी धूम मचा दी। समीक्षकों ने कहा कि यह अपने समय से आगे की फिल्म है। फिल्म को सभी मुख्य कलाकारों को अवॉर्ड भी मिले। अमिताभ जी मनोज बाजपेयी और रवीना टंडन जी को फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। वहां से एक फिल्ममेकर के तौर पर मेरी असली यात्रा शुरू हुई। मैं कह सकता हूं कि अमिताभ बच्चन जी ने मेरे करियर में एक डायरेक्टर को जन्म दिया। अंग्रेजी की एक कहावत है A child gives birth to the mother (बच्चा मां को जन्म देता है)। उसी तरह उन्होंने एक डायरेक्टर को जन्म दिया। यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी।
‘अक्स’ अमिताभ जी की कमबैक फिल्म थी। अगर अगले दिन सुबह 7 बजे की शूटिंग होती थी, तो रात को उनका फोन आ जाता था (हमारा कोल्ड वर्ड था) कि खाना खाया कि नहीं खाया? यानी, आ जाओ कल के सीन पर बात करते हैं। हम देर रात तक सीन पढ़ते थे। यहां तक कि जिस दिन अमित जी का सीन नहीं होता था (क्योंकि रवीना और मनोज जी की शूटिंग रात को होती थी), वह फिर भी सेट पर आ जाते थे। मेरी पहली फिल्म थी और उनका यह साथ मेरे लिए किसी फिल्म स्कूल से कम नहीं था।

सेट पर ‘सुकून’ और एक बेटे का फर्ज
‘अक्स’ अमिताभ बच्चन की कमबैक फिल्म थी, लेकिन सेट पर उनका व्यवहार किसी नए निर्देशक के लिए प्रेरणा स्रोत था। जिस दिन अमिताभ जी का सीन नहीं होता था, वे फिर भी सेट पर आ जाते थे। पूछने पर वे कहते थे, उन दिनों एबी कॉर्प में बहुत उथल-पुथल चल रही थी। जब मैं सेट पर आता हूं ना, तो मेरे को बड़ा सुकून मिलता है, चाहे मेरा सीन उस दिन हो या न हो। राकेश मेहरा के लिए तो यह सेट ही उनका फिल्म स्कूल था।
अमिताभ जी के साथ उनकी बातचीत में एबी कॉर्प के उतार-चढ़ावों पर भी खूब चर्चा होती थी। मेहरा मानते हैं कि जब कोई नया रास्ता बनाता है और कॉर्पोरेट स्तर पर फिल्म बिजनेस शुरू करता है, तो चुनौतियां आती हैं। वे कहते हैं, एक इंसान की पहचान तभी होती है जब दुनिया उसे कैंसिल कर देती है, और फिर वह उठकर बताता है कि मैं फिर खड़ा हूं और उससे बेहतर काम करता हूँ।
करियर में ऊंचाइयों पर पहुंचने के बाद भी अमिताभ जी ने बेटे का फर्ज जिस तरह निभाया, वह अविस्मरणीय है। जब उनकी माता जी की तबीयत सही नहीं थी और उनके शो अमेरिका में चल रहे थे, तो वे हर शुक्रवार-शनिवार को शो खत्म करके तुरंत पहली फ्लाइट पकड़कर भारत आते थे, तीन दिन यहां बिताकर वापस जाते थे। यह सिलसिला दो-तीन महीने चला। मेहरा कहते हैं, यह देखकर सीखने को मिलता है कि एक बेटे का फर्ज और उसकी ड्यूटी क्या होती है, जिसे हम अक्सर करियर में खोकर भूल जाते हैं।