38 मिनट पहलेलेखक: वर्षा राय
- कॉपी लिंक

फिल्म ‘जुगनुमा’ एक ऐसी सिनेमाई दुनिया रचती है, जहां रहस्य, कल्पना और भावनाओं की गहराई एक साथ बहती है। यह फिल्म न सिर्फ विज़ुअली खूबसूरत है, बल्कि अपनी कहानी और किरदारों के जरिए दिल को भी छू जाती है।इस फिल्म में हमें देखने को मिलता है सिनेमैटिक रियलिज्म और कल्पनात्मक जादू का अनोखा मेल।हमने इस मौके पर बात की ‘जुगनुमा’ से जुड़े खास सितारों से।फिल्म के निर्देशक राम रेड्डी,दीपक डोबरियाल, प्रियंका बोस और तिलोत्तमा शोम से।इन सभी ने अपने-अपने अनुभव, भावनाएं और फिल्म की गहराई हमारे साथ साझा कीं…

सवाल – जुगनुमा फिल्म के निर्देशक रामा रेड्डी जी, ये बताइए फिल्म का नाम ‘जुगनुमा’ कैसे पड़ा और कहानी में इस शब्द का महत्व क्या है?
जवाब/रामा रेड्डी- फिल्म की दुनिया एक काल्पनिक (फिक्शनल) दुनिया है, जिसमें रहस्य और सस्पेंस है। इस फिक्शनल वर्ल्ड को दर्शाने के लिए हमने एक नया प्रतीक चुना “जुगनू” यानी लिट फायरफ्लाई। जुगनू अंधेरे में भी रोशनी की एक झलक देता है, और वही इस फिल्म की कहानी का सार है। यह नॉस्टेल्जिया, रहस्य और कल्पना की उस चमक का प्रतीक है जो दर्शकों को एक अनोखी दुनिया में ले जाती है।
सवाल- दीपक डोबरियाल, आप हमेशा से लेयर्ड और कॉम्प्लेक्स रोल्स के लिए जाने जाते हैं। आपका क्या रोल है ‘जुगनुमा’ फिल्म में, और इस स्क्रिप्ट की खास बात क्या है?
जवाब/दीपक डोबरियाल– मैं तो ‘तिथ्थि’ फिल्म के समय से ही रामा रेड्डी का फैन रहा हूं। ‘जुगनुमा’ की स्क्रिप्ट पढ़ने से पहले ही मैं फिल्म की दुनिया में इन्वॉल्व हो चुका था, क्योंकि मैंने उनका पिछला काम देखा था। फिर जब मुझे ऑफर आया कि एक मैनेजर का रोल है, तो मैंने तुरंत हा कह दिया।फिल्म पहाड़ों में शूट हो रही थी और पहाड़ मुझे वैसे भी खींचते हैं तो इंकार करने का सवाल ही नहीं था। शूटिंग के दौरान कोविड भी आया, लेकिन हम वहीं कुटिया जैसी जगह बनाकर रहते थे। रामा रेड्डी की फिल्म की जो भाषा है वो बहुत अलग और अनोखी होती है। उनके साथ रहकर तो ऐसा लगता था जैसे पहाड़ भी मेरे लिए नए हो गए हों। यही अनुभव इस फिल्म को और भी खास बना देता है।
सवाल: प्रियंका बोस जी, ‘जुगनुमा’ में आपका अनुभव कैसा रहा? आपने स्क्रिप्ट को क्यों चुना और आपका किरदार क्या है?
जवाब/प्रियंका बोस- जब मुझे स्क्रिप्ट भेजी गई, उससे पहले ही रामा रेड्डी ने मेरा काम देखा था। स्क्रिप्ट एक बहुत ही सुंदर, फेरी टेल जैसी लगी। पहले फिल्म का नाम ‘पहाड़ों में’ था, लेकिन बाद में बदलकर ‘जुगनुमा’ रखा गया ।और मुझे ये नाम बेहद पसंद आया। रिलीज को लेकर एक प्रेशर भी था कि चलो, आखिरकार फिल्म रिलीज तो हो रही है।मैं इस फिल्म में “नंदिनी” का किरदार निभा रही हं। जो एक गृहिणी है, लेकिन उसका पारिवारिक संबंधों के साथ बहुत मजबूत जुड़ाव है। जब भी परिवार पर कोई मिस्ट्री या संकट आता है, नंदिनी उस यूनिट का इमोशनल सेंटर बन जाती है।
सवाल- तिलोत्तमा शोम ‘जुगनुमा’ में आपकी भूमिका क्या है और इस फिल्म से आपको क्या खास अनुभव मिला?
जवाब/तिलोत्तमा शोम- फिल्म की कहानी के भीतर एक और कहानी है, जो मेरा किरदार अपने बच्चे को सुनाती है। जैसे हर घर में रिचुअल्स होते हैं कोई लोरियां गाता है, कहानियां सुनाता है वैसे ही मैं इस फिल्म में एक कहानी के भीतर की कहानी सुना रही हूँ।दिलचस्प बात ये है कि मुझे बच्चों से खास लगाव नहीं था, लेकिन रामा रेड्डी ने फिल्म में मुझे काफी सारे बच्चों के साथ सीन दे दिए। एक बात का अफसोस जरूर है कि मुझे मनोज सर के साथ काम करने का मौका नहीं मिला। काश स्क्रीन पर उनके साथ कोई सीन होता।
सवाल: फिल्म की तारीफ हो रही है, सिनेमैटिक क्वालिटी की भी खूब सराहना हो रही है। इस पर आप क्या कहेंगे?
जवाब/दीपक डोबरियाल- बड़ा अच्छा लग रहा है। मैंने ट्रेलर के सारे कमेंट्स पढ़े हैं। और ये तारीफें हमारे लिए हार जैसी हैं। यहां तक कि जो ट्रोलिंग भी होती है, वो हमें अब डायमंड जैसी लगती है, क्योंकि वो भी एक ध्यान देने का तरीका है।बहुत समय बाद कोई ऐसी फिल्म आई है जो पूरे फेस्टिवल सर्किट में घूमी है और अब आम दर्शकों तक पहुंची है वो भी एक मजबूत नैरेटिव के साथ। लोगों ने फिल्म देखकर मुझे रोते हुए कॉल किया और कहा, “भाई, ये तो सॉलिड फिल्म है।” इससे बड़ी बात एक कलाकार के लिए क्या हो सकती है?
रामा रेड्डी- मैंने खुद 10,000 से ज़्यादा कमेंट्स पढ़े हैं। लोग कह रहे हैं कि फिल्म “दिल से बनाई गई है”। और यही सबसे बड़ा कॉम्प्लिमेंट होता है।सिनेमैटिक एक्सपीरियंस फिल्म में भरपूर है। हमने इसकी स्केलिंग पर भी बहुत ध्यान दिया। खासकर फिल्म के अंत में जो लड़का पंख लगाकर उड़ता है वो एक सिनेमैटिक एक्सपेरिमेंट था।हमने रिस्क लिया, लेकिन लोगों का प्यार देखकर लगता है कि वो रिस्क सफल रहा।

सवाल: फिल्म में मनोज बाजपेयी जैसे दिग्गज कलाकार हैं, जिन्हें “एक्टिंग का इंस्टिट्यूट” कहा जाता है। उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
जवाब/रामा रेड्डी– मैं एक यंग डायरेक्टर हूं। मेरी पहली फिल्म ‘तिथ्थि’ में ज्यादातर नॉन-एक्टर्स थे, इसलिए जब मुझे मनोज बाजपेयी जैसे कलाकार के साथ दूसरी ही फिल्म में काम करने का मौका मिला, तो मैं थोड़ा नर्वस था। मैं गैंग्स ऑफ वासेपुर में उनके ‘सरदार खान’ वाले रोल का बहुत बड़ा फैन हूं। जब पहली बार उनसे मिला तो हैरानी हुई कि वो कितने सहज और सहयोगी हैं। मनोज जी ने जब अपना किरदार पकड़ा तो चीजें अपने आप आसान हो गईं। उनके साथ काम करना एक जुगलबंदी जैसा अनुभव था। और वो अनुभव बहुत ही एनरिचिंग रहा। हमने साथ मिलकर किरदार को गढ़ा, फिल्म को आकार दिया।
प्रियंका बोस- हमने शूटिंग के दौरान काफी समय साथ में बिताया। मेरी फैमिली, उनकी फैमिली, सब साथ ही रहते थे। मनोज जी इंडस्ट्री में एक आउटसाइडर के रूप में आए थे, और मैं भी। यही एक साझा अनुभव था, जिससे हमारी बातचीत और गहराई से जुड़ी।हमने साथ में ट्रेकिंग भी की, और उन पलों की सारी तस्वीरें दीपक जी ने खींची। उनके साथ समय बिताना बहुत ही खास रहा।
दीपक डोबरियाल- मैंने मनोज जी के साथ पहले ‘1971’ फिल्म में काम किया था। वहां से यहां तक का सफर मजेदार रहा है। इस फिल्म में हमारे बीच और भी जबरदस्त ट्यूनिंग बनी। शूटिंग के दौरान वो होटल में बोर हो जाते थे और हमारी झोपड़ियों में आ जाते थे। मजाक-मस्ती में चिल्लाते, “दीपक बाहर निकलो!” और फिर खुद मटन बनाकर हमारे लिए लाते। वो खाने के बहुत शौकीन हैं। कोविड के समय हम सबने साथ मिलकर खेती-बाड़ी तक शुरू कर दी थी। सुबह की चाय की चुस्कियों के साथ बातचीत वो सारे पल वाकई यादगार थे।

सवाल- अगर आपको ‘जुगनुमा’ जैसी किसी दुनिया में जीने का मौका मिले, तो आप कौन-सा किरदार निभाना चाहेंगी- जुगनू का, किसी रहस्यमय पात्र का या कहानीकार का?
जवाब/तिलोत्तमा शोम- मैं जुगनू का किरदार निभाना चाहूंगी। उसकी जो उड़ान है, वो मुझे भी एक बार महसूस करनी है।जुगनू उड़ते हैं, चमकते हैं, लेकिन जरूरत पड़े तो खुद को धीरे से छुपा भी सकते हैं। एक जुगनू की तरह अपने अस्तित्व को कभी रोशनी में लाना, कभी अंधेरे में छुपा लेना यही जुगनुमा दुनिया का जादू है,और मैं उसका हिस्सा बनना चाहूंगी।