13 मिनट पहलेलेखक: उमेश कुमार उपाध्याय
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अमिताभ बच्चन और निर्माता आनंद पंडित के रिश्ते इतने गहरे हैं कि बच्चन साहब उनकी फिल्मों में बिना फीस के काम कर देते हैं। वह उनकी दो रीजनल फिल्मों में काम कर चुके हैं। खबर है कि पंडित की अगली फिल्म ‘सरकार-4’ के लिए भी उनसे बातचीत चल रही है। अगर बात बनी, तो बच्चन साहब नए अवतार में दिखेंगे। फिलहाल, आनंद पंडित ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत के दौरान अमिताभ बच्चन से जुड़ी कुछ खास यादें साझा किया।

अमिताभ बच्चन से पहली मुलाकात
मैंने अमिताभ बच्चन स्टारर फिल्म ‘त्रिशूल’ 50-60 दफा देखी होगी। इसमें उनके किरदार विजय का मिजाज बहुत पसंद आया। फिल्म में अमिताभ बच्चन ने जिस तरह से अपनी माताजी के नाम पर मुंबई में रियल इस्टेट कंपनी शांति कंट्रक्शन शुरू की थी, उसी तरह मेरा सपना था कि अहमदाबाद से मुंबई आकर रियल इस्टेट कंपनी शुरू करूं। समय का चक्र चला, मैं अहमदाबाद से मुंबई आ गया। सपना था कि कभी बच्चन साहब को देख सकूं, तब बहुत अच्छा होगा। बच्चन साहब जब प्रतीक्षा बंगला के बाहर दर्शन देते थे, तब वहां पर दो-तीन बार उनकी झलक देखने को मिली। यह मेरी पहली मुलाकात थी। खैर, समय का चक्र चलता रहा, कुछ वर्षों बाद एक दोस्त के जरिए बच्चन साहब से उनके घर पर मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह काम को लेकर नहीं, बल्कि कैजुअल मुलाकात थी, जो मेरे लिए फैन मूवमेंट ही रहा।
मैंने कुछ साल बाद बच्चन साहब के जनक और जलसा बंगले से सटा एक बंगला खरीदा। हम दोनों की कंपाउंड वॉल एक ही थी। यहां भव्य बंगला बनाना चाहता था, लेकिन एक दिन बच्चन साहब मेरे घर पर आए। उन्होंने रिक्वेस्ट किया कि ‘आनंदभाई! यह बंगला मुझे देने की कृपा करें।’ मैंने एक भी क्षण देरी किए बिना कहा कि सर! आज से यह बंगला आपका हो गया।
हमारे बीच लिखा-पढ़ी या लेन-देन तक का डिस्कशन नहीं हुआ। मैंने चाभी उठाकर सीधे बच्चन साहब को पकड़ा दिया। मैं जिन्हें गॉड फीगर मानता हूं, वे घर पर आकर एक रिक्वेस्ट कर रहे हैं, मेरे लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है। यह मेरे लिए गुरुदक्षिणा जैसा था। फिलहाल यह हमारे जुड़ाव का बहुत बड़ा किस्सा हो गया।

माइनस 17 डिग्री ठंड में भी सेट पर मौजूद रहते थे अमिताभ बच्चन
अमिताभ बच्चन जी ने बतौर निर्माता ‘चेहरे’, ‘फक्त महिलाओं माटे’ और ‘फक्त पुरुषों माटे’ में काम किया, लेकिन कभी पारिश्रमिक नहीं लिया। यहां तक कि स्लोवाकिया में ‘चेहरे’ की शूटिंग के लिए अपने आने-जाने और चार्टेड फ्लाइट का खर्च भी खुद उठाया।
फिल्म के आखिरी शेड्यूल के लिए बर्फ चाहिए थी, इसलिए नवंबर में स्लोवाकिया के एक ऊंचे नेशनल पार्क में शूटिंग हुई, जहां सड़क, लाइट या वैनिटी की सुविधा नहीं थी और तापमान माइनस 17 डिग्री था। उम्मीद थी कि बच्चन साहब इतनी ठंड में देर से आएंगे, लेकिन वे सुबह पौने सात बजे मेकअप के साथ सेट पर पहुंच गए।
पहला शॉट खत्म होने के बाद जब उन्हें होटल जाकर आराम करने को कहा गया, तो उन्होंने मना करते हुए कहा— “आराम करने नहीं, काम करने आया हूं, सिर्फ एक कुर्सी दे दो।” वे वहीं बैठकर पूरी शूटिंग देखते रहे। उनके मौजूद रहने से पूरी यूनिट तेज़ी और उत्साह से काम करने लगी, और 9 दिन का काम सिर्फ 6 दिनों में पूरा हो गया।
बच्चन साहब बोले- कभी रीजनल फिल्म की नहीं है, कैसे कर पाऊंगा
अमिताभ बच्चन के साथ यह वाकया खास है। मैंने उन्हें बताया कि मैं एक गुजराती फिल्म कर रहा हूं, विषय अच्छा है। उन्होंने आशीर्वाद दिया तो मैंने कहा, सिर्फ आशीर्वाद नहीं, एक छोटा रोल भी कर दीजिए। पहले उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी रीजनल फिल्म नहीं की, लेकिन मेरी बात सुनकर तुरंत मान गए। बोले, “कब और कहां आना है, बता दीजिए।”
शूट तीन दिन का था, फिल्मसिटी में। सेट पर पहुंचकर बच्चन साहब बोले कि रोल तो कमाल का है, अगर पहले पता होता तो रोल बढ़वा लेता। खास बात यह रही कि जिसकी शूटिंग तीन दिन में होनी थी, उसे उन्होंने अपनी बेहतरीन तैयारी से सिर्फ पांच घंटे में खत्म कर दिया।
बच्चन साहब को डबिंग आर्टिस्ट का नाम सुझाया, तब बोले- मैं ट्राई करता हूं
अमिताभ बच्चन एक फिल्म में सूत्रधार थे। पूरी फिल्म में उनकी आवाज बैकग्राउंड में आती रहती है। जब शूटिंग खत्म हुई और डबिंग शुरू हुई, तो मैंने सोचा बच्चन साहब शायद इतनी गुजराती नहीं बोल पाएंगे। इसलिए कुछ आवाज़ों के सैंपल लेकर उनके पास गया और कहा कि इनमें से किसी आर्टिस्ट से डबिंग करवा लेते हैं।
इस पर बच्चन साहब बोले, “आपको अपने आर्टिस्ट पर भरोसा नहीं है?” मैंने सफाई दी कि बस गुजराती ज़्यादा है इसलिए कहा। उन्होंने जवाब दिया, “मैं कोशिश करूंगा, अगर ठीक न हुआ तो किसी और से कर लीजिए।”
अगले दिन स्टूडियो में उन्होंने कहा, “आप गुजराती में बात कीजिए, मैं सुनता हूं और लहज़ा पकड़ लूंगा।” कुछ देर बाद उन्होंने डबिंग शुरू की — और केवल एक घंटे में पूरी फिल्म की शुद्ध गुजराती डबिंग पूरी कर दी, जो किसी और को करने में पूरा दिन लग जाता।
कोरोना काल में 25 बेड का हॉस्पिटल तैयार करवाया
अमिताभ बच्चन जी अक्सर चैरिटी करते हैं। कोरोना के समय एक दिन उन्होंने मुझे फोन किया और कहा – “आनंद भाई, तुरंत जुहू में हॉस्पिटल शुरू कराइए।” उनकी बात सुनकर, सिर्फ 5-6 दिनों में जुहू के एक स्कूल को 25 बेड वाले ऑक्सीजन युक्त हॉस्पिटल में बदल दिया गया। इसे बनाने में एक करोड़ से ज्यादा खर्च आया, लेकिन हॉस्पिटल बनाने और चलाने का पूरा खर्च उन्होंने कॉपोरेशन के साथ मिलकर उठाया।

अमिताभ बच्चन को पसंद है रियल इस्टेट
अमिताभ बच्चन को रियल एस्टेट में गहरी दिलचस्पी है और वे इसमें अच्छी समझ रखते हैं। वे कैपिटल मार्केट से भी जुड़े हैं और नए प्रमोटर्स को निवेश देकर मदद करते हैं। उन्होंने मेरे साथ अंधेरी (मुंबई) में एक प्रोजेक्ट पर पार्टनरशिप की थी, जो सफलतापूर्वक पूरा हुआ। इसके अलावा उन्होंने अपनी कंपनी में 10 करोड़ रुपए से ज्यादा का निवेश भी किया है, जो सार्वजनिक जानकारी है।
बच्चन साहब मानते हैं कि दीप जलता रहना चाहिए, बुझना नहीं चाहिए। मैं हर साल उनके जन्मदिन पर जाकर आशीर्वाद लेता हूं। उस दिन वे पूजा-पाठ और यज्ञ-हवन करते हैं। वे धार्मिक स्वभाव के हैं और जन्मदिन पर पार्टी की बजाय दान करते हैं। पिछले साल किसानों की मदद की, उससे पहले 80 हजार पेड़ लगवाए और एक बार 8 हजार अनाथ बच्चों को होटल में भोजन करवाया। हर साल उनके बर्थडे पर मैं भी कुछ अलग करने की कोशिश करता हूं, इस बार भी दो-तीन आइडिया पर सोच रहा हूं।