Dhanteras 2025 Gold Shopping: दिवाली से पहले धनतेरस का त्योहार आज 18 अक्टूबर 2025 को मनाया जा रहा है. इस दिन से ही दीपोत्सव की शुरुआत मानी जाती है. धनतेरस पर लोग कई तरह की चीजों की खरीदारी करते हैं. लेकिन इस दिन सोना खरीदना सबसे अधिक शुभ माना जाता है.
धनतेरस के अलावा भी ऐसे कई मौके होते हैं जब सोना खरीदना सबसे ज्यादा शुभ हो जाता है. इसका कारण यह है कि, हिंदू धर्म में स्वर्ण या सोना को सबसे ज्यादा शुभ, शुद्ध और पवित्र धातु माना गया है. इसे साक्षात मां लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है.
वेद और शास्त्रों में भी सोने को सबसे पवित्र धातु बताया गया है, जिसके स्पर्श मात्र से ही व्यक्ति भी शुद्ध हो जाता है. भारतीय समाज में सोना को हमेशा धन, ऐश्वर्य और समृद्धि का प्रतीक माना गया है. लेकिन कई बार सोना पाप, लोभ और विनाश का कारण भी बन जाता है. आइए जानते हैं कि आखिर चमकदार और शुद्ध सोना कैसे बन गया ‘पाप का प्रतीक’.
सोना समृद्धि लेकिन पाप का प्रतीक भी
सोना हमेशा से ही धन, वैभव, सौंदर्य और शक्ति का प्रतीक रहा है. लेकिन जब यह अत्यधिक मोह, अहंकार और लोभ का रूप ले लेता है, तब यही सोना व्यक्ति को पतन की ओर ले जाता है. धार्मिक दृष्टि से, सोने का उपयोग तभी शुभ माना गया है जब वह धर्म, दान और सम्मान के लिए किया जाए.
धार्मिक ग्रंथों में भी दी गई है चेतावनियां
महाभारत में भी सोने को संघर्ष का कारण बताया गया है. हस्तिनापुर का युद्ध, स्वर्ण सिंहासन और राज्य की लालसा का परिणाम था.
रामायण में रावण के सोने का लंका इस बात का प्रतीक है कि स्वर्ण से बने महल में भी अधर्म टिक नहीं सकता. रावण के पास सोने का साम्राज्य था, लेकिन धर्म से दूर होने के कारण उसका विनाश हुआ.
रामायण में माता सीता को सोने का हिरण देख लोभ आ गया और वह उन्होंने इसे पाने की इच्छा जताई, जिस कारण भगवान राम सोने के हिरण की ओर भागे. असल में वह सोने का हिरण मारिच था. भगवान राम हिरण के पीछे भागे, इधर लक्ष्मण भी राम की ओर गए और रावण अपनी योजना में कामयाब होकर सीता का हरण कर लिया.
सोना कब शुभ और शुद्ध
- सोना को जब सत्य और धर्म के मार्ग में उपयोग किया जाए.
- दान या पूजन कार्यों में समर्पित किया जाए.
- अहंकार या दिखावे के लिए न प्रयोग किया जाए.
ये सभी उदाहण है कि, सोने पर अधिक लोभ और अहंकार हमेशा विनाश का ही कारण बनता है. कलियुग में चोरी, लूट, हत्या जैसे कई अपराध का कारण सोना होता है. इसलिए संत कवि कहते हैं कि- सोना नहीं, सोने जैसा मन बनाओ.
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