विदेश में हुआ जन्म, 85 हजार सैनिक थे शामिल, INA की ललकार से कांप उठे थे अंग्रेज… आजाद हिंद फौज की कहानी – Indian National Army INA know about azad hind fauj history rttw 

विदेश में हुआ जन्म, 85 हजार सैनिक थे शामिल, INA की ललकार से कांप उठे थे अंग्रेज… आजाद हिंद फौज की कहानी – Indian National Army INA know about azad hind fauj history rttw 


आजाद हिंद फौज की कहानी भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक बहुत ही प्रेरणादायक अध्याय है. आजाद हिंद फौज (Indian National Army – INA) की स्थापना 1942 में सिंगापुर में हुई थी. इसकी शुरुआत कैप्टन मोहन सिंह ने की थी, लेकिन बाद में इसका नेतृत्व नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने संभाला. इसका उद्देश्य था- अंग्रेजों को भारत से भगाकर आजादी दिलाना. इसमें करीब 85,000 भारतीय सैनिक शामिल थे, जिनमें महिलाओं की भी एक रेजिमेंट थी – “झांसी की रानी रेजिमेंट.”

क्या था इसका उद्देश्य
इस फौज का मकसद था- ब्रिटिश हुकूमत को भारत से बाहर निकालना और भारत को आजाद कराना. नेताजी का नारा था – “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा.”आजाद हिंद फौज की कहानी भारत की आजादी के संघर्ष की एक बहादुर और प्रेरणादायक गाथा है. जब भारत ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था, तब सुभाष चंद्र बोस ने आजादी के लिए हथियार उठाने का फैसला किया. उन्होंने 1942 में सिंगापुर में “आजाद हिंद फौज” (Indian National Army – INA) की स्थापना की.

संरचना और सैनिक
आजाद हिंद फौज में लगभग 85,000 सैनिक शामिल थे. इनमें भारतीय सैनिक, दक्षिण-पूर्व एशिया में बसे भारतीय और कई महिलाएं भी थीं. महिलाओं के लिए “झांसी की रानी रेजिमेंट” नाम की एक यूनिट भी बनाई गई थी. इस फौज में करीब 85,000 भारतीय सैनिक शामिल हुए- इनमें कई भारतीय कैदी और दक्षिण-पूर्व एशिया में रहने वाले भारतीय भी थे.

महिलाओं के लिए “झांसी की रानी रेजिमेंट” नाम की यूनिट बनाई गई, जो बोस की सोच में महिला शक्ति का प्रतीक थी. आजाद हिंद फौज ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ बर्मा (म्यांमार) और भारत की सीमा पर युद्ध लड़ा, जापान की मदद से. बोस ने “जय हिंद” और “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा” जैसे नारे दिए, जो आज भी हर भारतीय को जोश से भर देते हैं.

सहयोग और युद्ध
आजाद हिंद फौज को जापान का समर्थन मिला. नेताजी ने आजाद हिंद सरकार की स्थापना भी की, जिसे कई देशों ने मान्यता दी थी. INA ने बर्मा (म्यांमार) और इम्फाल के मोर्चों पर ब्रिटिश सेना से लड़ाई लड़ी.  हालांकि युद्ध में अंततः फौज को सफलता नहीं मिली, लेकिन आजाद हिंद फौज के बलिदान और साहस ने भारतीय जनता में आजादी की भावना को और मजबूत किया. ब्रिटिश सरकार भी इनके मुकदमों और प्रभाव से डर गई थी, और इससे स्वतंत्रता आंदोलन को नई ऊर्जा मिली. आजाद हिंद फौज ने साबित किया कि भारतीय भी अपनी ताकत और संगठन से आज़ादी हासिल कर सकते हैं. नेताजी और उनकी फौज आज भी देशभक्ति और साहस के प्रतीक माने जाते हैं.

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