Govardhan Puja 2025: गोवर्धंन पूजा में क्यों लगाया जाता है 56 भोग? जाने धार्मिक रहस्य और अन्नकूट की परंपरा!

Govardhan Puja 2025: गोवर्धंन पूजा में क्यों लगाया जाता है 56 भोग? जाने धार्मिक रहस्य और अन्नकूट की परंपरा!


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Govardhan Puja 2025: गोवर्धन पूजा का त्योहार आज हर जगह धूमधाम से मनाया जाएगा. हर साल इसे कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष कि प्रतिपदा पर मनाया जाता है. श्री कृष्ण के गोवर्धन पर्वत उठाने की अलौकिक लीला पर ये पर्व समर्पित है.

भक्त आज के दिन पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ गोवर्धन पर्वत की पूजा करेंगे. कई जगह लोगों द्वारा श्री कृष्ण की अलग-अलग लीलाओं की झलकियां भी निकाली जाएगी. पूजा के वक्त पर्वत के समक्ष कई विभिन्न तरह के अनाज जैसे- मिठाई, फल, दालें और सब्जियों से भोग तैयार किया जाता है.

इससे ही अन्नकूट कहा जाता है. अन्नकूट का मतलब यानी अन्न का पर्वत. यह पर्वत भक्ति, निष्ठा और समृद्धि का प्रतीक है. 

56 भोग अर्पित करने की पारंपरिक वजह

गोवर्धन पूजा के दिन पारंपरिक रूप से 56 प्रकार के भोग, भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है. जिससे छप्पन भोग का प्रसाद कहा जाता है. धार्मिक दृष्टि से इस प्रसाद का विशेष महत्व है, इस भोग को श्री कृष्ण की संपन्नता, उदारता और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है.

यह भोग जीवन में विविधता और संपन्नता लाता है. 56 तरह के भोग को अर्पित करने से सभी देवी-देवताओं की असीम कृपा प्राप्त होती है. जिससे जीवन में सुख-शांति और आर्थिक स्थित भी स्थिर रहती है. 

56 भोग में शामिल चीजें 

56 भोगों की थाली में स्वाद और परंपरा का अद्भुत संगम होता है. इसमें माखन-मिश्री, शुद्ध देसी घी, चावल, गेहूं, मूंग, उड़द, मसूर, चना, राजमा, छोले जैसे अन्न और दालों के साथ-साथ आलू, लौकी, तुरई, भिंडी, गवार फली, करेला, कद्दू, बैंगन और पालक जैसी सब्ज़ियाँ शामिल होती हैं.

फलों में केला, सेब, अमरूद, संतरा, अंगूर, अनार, पपीता, आम और नारियल का विशेष स्थान होता है. मीठे में खीर, हलवा, लड्डू, पेड़ा, रसगुल्ला, बर्फी, खाजा, मोदक, घेवर और पुरानी पारंपरिक मिठाइयाँ परोसी जाती हैं.

साथ ही चकली, पूड़ी, पकोड़ा, पकौड़ी, मठरी, उपमा, खिचड़ी, कढ़ी-चावल, दही, चटनी और पापड़ जैसे व्यंजन इस प्रसाद में शामिल होते हैं. 

भोग का आध्यात्मिक महत्व

आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व से अन्नकूट और 56 भोग की परंपरा बहुत गहरी है. यह सिर्फ खाने-पीने की चीजें नहीं है, जो अर्पित की जाती है, बल्कि इससे घर और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ती होती है.

यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति केवल मन या वाणी तक सीमित नहीं होती, जब भक्त पूर्ण समर्पण और सेवा भाव से भोग अर्पित करता है, तभी उसकी पूजा पूर्ण मानी जाती है.

भोग अर्पण की यह क्रिया न केवल देवी-देवताओं को प्रसन्न करती है, बल्कि साधक के जीवन में शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी बढ़ाती है.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.



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