साल 2017 में कर्नाटक की एक नर्स सऊदी अरब गई थी, जहां उसे महीने के 25,000 रुपये सैलरी का वादा किया गया था. लेकिन वहां उसके कफील (एम्प्लोयर) ने उसे तस्करी का शिकार और गुलाम बना दिया. भूखा रखकर उससे खूब मेहनत कराया जाता, हिंसा की धमकियां दी जाती और गुलामी कराई जाती. उसकी आजादी की लड़ाई महीनों तक चली और आखिरकार वो आजाद हो गई. अब सऊदी अरब ने 50 साल पुरानी कफाला सिस्टम को समाप्त कर दिया है, वही सिस्टम जो भारतीय नर्स के शोषण और अत्याचार का जरिया बना.
सऊदी अरब में अब कफाला का अध्याय समाप्त हो गया है, लेकिन यह सिस्टम अभी भी कई अन्य खाड़ी देशों (GCC देशों) में अब भी जारी है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) के अनुसार, गल्फ देशों में लगभग 2,40,00,000 मजदूर अभी भी कफाला जैसे सिस्टम के तहत रहते हैं. इनमें सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की है, करीब 75 लाख लोग.
पिछले हफ्ते एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, सऊदी अरब ने विवादित कफाला स्पॉन्सरशिप सिस्टम को समाप्त कर दिया. इस सुधार से लगभग 1,30,00,000 प्रवासी मजदूरों, जिनमें 25 लाख से अधिक भारतीय शामिल हैं, को लाभ मिलने की उम्मीद है.
मानवाधिकार समूह कफाला सिस्टम को ‘आधुनिक युग की गुलामी’ कहते हैं जो मजदूरों को उनके काम देने वाले यानी नियोक्ता से बांध देता है. इसमें नौकरी बदलने, देश छोड़ने या अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करने के लिए उनके स्पॉन्सर की अनुमति जरूरी होती है. अब यह खत्म हो गया है. मजदूर अब स्वतंत्र रूप से नौकरी बदल सकते हैं, सऊदी अरब छोड़ सकते हैं, लेबर कोर्ट जा सकते हैं और वो भी कफील की अनुमति के बिना.
संक्षेप में कहें तो, कफाला एक ऐसा सिस्टम था जो मजदूरों के शोषण को बढ़ावा देता था और उन्हें अमानवीय परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर करता था. कई GCC देश अभी भी किसी न किसी रूप में कफाला सिस्टम लागू रखे हुए हैं. कतर ने 2022 फीफा विश्व कप से पहले कुछ नियमों में ढील दी थी, लेकिन सऊदी अरब ने इसे पूरी तरह खत्म कर दिया, जो एक महत्वपूर्ण कदम है.
कफाला सिस्टम क्या है और कफील कौन है?
इस सिस्टम का नाम अरबी शब्द ‘कफाला’ के नाम पर रखा गया, जिसका अर्थ है स्पॉन्सरशिप. यह दशकों से खाड़ी देशों में प्रवासी श्रम नियंत्रण का आधार रही है. 1950 के दशक में, जब खाड़ी देशों में व्यापक स्तर पर कच्चे तेल की खोज हुई, विदेशी मजदूरों के आगमन को कंट्रोल करने के लिए यह सिस्टम बनाया गया.
इसमें मजदूर की कानूनी स्थिति एक नियोक्ता या कफील से जुड़ी होती है. कफील के पास सभी अधिकार होते हैं- वीजा, नौकरी, रहने से लेकर यात्रा की अनुमति तक. मजदूर अनिवार्य रूप से अपने नियोक्ता के अधीन फंसे रहते हैं.
यह सिस्टम स्थानीय नौकरियों की सुरक्षा और श्रमिकों की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था लेकिन यह लाखों लोगों, खासकर भारतीयों के लिए बुरे सपने जैसा बन गया. सऊदी अरब में ही लगभग 40% आबादी प्रवासी हैं (130 लाख से अधिक लोग) और कफाला के तहत मजदूरों को नौकरी बदलने, देश छोड़ने या अपने पासपोर्ट रखने के लिए भी अपने स्पॉन्सरों की अनुमति लेनी पड़ती थी. इससे मजदूरों का शोषण बढ़ा और उनके साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं बढ़ गईं.
किन नौकरियों पर लागू होता है कफाला सिस्टम?
कफाला सिस्टम मुख्य रूप से ब्लू-कॉलर और कम सैलरी वाले प्रवासी मजदूरों पर लागू होता है, खासकर घरेलू नौकर, कंस्ट्रक्शन, हॉस्पिटैलिटी, सफाई और अन्य शारीरिक श्रम वाले क्षेत्रों में काम करने वालों पर. ये मजदूर ज्यादातर भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, फिलीपींस, नेपाल और इथियोपिया जैसे देशों से आते हैं.
व्हाइट-कॉलर प्रोफेशनल्स जैसे डॉक्टर, इंजीनियर और कॉर्पोरेट कर्मचारी पर आमतौर पर कफाला सिस्टम के सबसे सख्त नियम लागू नहीं होते, लेकिन तकनीकी रूप से उन्हें भी रेसिडेंसी और रोजगार के लिए स्पॉन्सर की जरूरत होती है.
कफाला सिस्टम अब भी खाड़ी देशों में मौजूद है जैसे यूएई, कुवैत, बहरीन, ओमान, लेबनान और जॉर्डन में थोड़े बदले हुए रूप में. 2022 फुटबॉल वर्ल्ड कप से पहले कतर ने कुछ नियमों में ढील दी थी, जिससे कामगारों को नियोक्ता की अनुमति के बिना नौकरी बदलने की आजादी मिली, लेकिन एक्जिट वीजा जैसी सख्त शर्तें बरकरार रहीं.
यूएई और बहरीन ने भी कुछ छोटे सुधार किए हैं, लेकिन केवल सऊदी अरब ने कफाला सिस्टम को पूरी तरह खत्म किया है जो एक बड़ा कदम माना जा रहा है. इसके बावजूद लगभग 2.4 करोड़ प्रवासी मजदूर, जिनमें करीब 75 लाख भारतीय शामिल हैं, अब भी खाड़ी देशों में कफाला जैसी सख्त व्यवस्थाओं के तहत रह रहे हैं.
कफाला सिस्टम गुलामी की प्रथा कैसे बन गया?
कफाला को ‘आधुनिक युग की गुलामी’ कहा गया है. यह सिस्टम एम्प्लोयर को अपने अधीन काम करने वाले श्रमिक के सभी अधिकार दे देता है. इस वजह से श्रमिकों के साथ पासपोर्ट जब्त करने, वेतन न देने, ज्यादा काम कराने, शारीरिक और यौन हिंसा, और जबरन श्रम जैसी भयावह दुर्व्यवहार की घटनाएं होती हैं.
उदाहरण के लिए, 2017 में कर्नाटक की नर्स हसीना बेगम को कफाला सिस्टम के तहत सऊदी अरब भेजा गया. उसे महीने के 1.5 लाख रुपये वेतन का वादा किया गया था, लेकिन वह गुलामी में धकेल दी गई. उसे शारीरिक और मानसिक हिंसा झेलनी पड़ी.
हसीना को दमाम में उसके कफील ने तीसरी मंजिल से नीचे फेंक दिया. इसके बाद जब वो बच गईं और पुलिस स्टेशन गईं तो पुलिस ने उल्टा उन्हें ही पीट दिया. जब तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और भारतीय दूतावास ने हस्तक्षेप किया तब जाकर हसीना को आजादी मिल सकी.
2010 में 57 वर्षीय बिल्डिंग पेंटर महावीर यादव नौकरी की तलाश में सऊदी अरब गए. छह साल बाद, 2016 में हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई. वो बेहद तनाव में थे और उनसे अमानवीय परिस्थितियों में बहुत अधिक काम कराया जाता था. उनके नियोक्ता ने कथित तौर पर उन्हें शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया, वेतन रोका और पासपोर्ट जब्त कर दिया, जिससे वो अकेले और असहाय रह गए और आखिरकार उनकी मौत हो गई.
एमनेस्टी, ह्यूमन राइट्स वॉच और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्टें हर साल हजारों ऐसे मामलों को आंकड़ों के साथ प्रमाणित करती हैं.
सऊदी अरब ने कफाला सिस्टम क्यों खत्म किया?
14 अक्टूबर को सऊदी अरब ने आखिरकार इस सिस्टम को खत्म करने की घोषणा की. अंतरराष्ट्रीय दबाव और घरेलू सुधार की मांगों के कारण सऊदी अरब को यह कदम उठाना पड़ा. यह कदम सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान की ‘विजन 2030’ योजना का हिस्सा है.
इस नई व्यवस्था के तहत, सऊदी अरब कॉन्ट्रैक्ट-आधारित रोजगार सिस्टम को अपनाएगा. यह सुधार लगभग 130 लाख मजदूरों, जिनमें 25 लाख भारतीय शामिल हैं, को कानूनी अधिकार देता है.
यह कदम प्रवासी मजदूरों के लिए अभूतपूर्व है. हालांकि, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने चेतावनी दी है कि कानून केवल कागज पर नहीं, बल्कि जमीन पर भी लागू होना चाहिए. सऊदी अरब में कफाला का अंत एक बड़ी जीत है, लेकिन खाड़ी के अन्य देशों में प्रवासी मजदूरों की गरिमा के लिए संघर्ष अभी जारी है.
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