माता-पिता का हमारे जीवन में काफी इंपॉर्टेंट रोल होता है. एक बच्चे के लिए उसके पैरेंट्स ही उसका परिवार और उसके फर्स्ट टीचर्स होते हैं. हर बच्चे का सेफ स्पेस उसके पैरेंट्स ही होते हैं. लेकिन कई बार यही पैरेंट्स जब बच्चे के प्रति ओवर केरिंग, रिस्ट्रिक्टिव और ओवर प्रोटेक्टिव हो जाते हैं तो इससे बच्चे को परेशानी होने लगती है.
दरअसल, पैरेंट्स सोचते हैं कि वह अपने बच्चे को डिसिप्लिन में रख रहे हैं. लेकिन ये स्ट्रिक्ट पेरेंटिंग कब टॉक्सिसिटी में बदल जाती है, इसका उन्हें पता नहीं चलता. ऐसे में आइए जानते हैं कि किन आदतों को देखकर पहचान सकते हैं कि कहीं आप भी तो टॉक्सिक पैरेंट्स नहीं हैं.
जरूरत से ज्यादा ओबीडिएंसी
कई बार पैरेंट्स अपने बच्चों से कुछ ज्यादा ही एक्सपेक्ट करने लगते हैं और चाहते हैं कि बच्चे बिना कोई सवाल किए उनकी सारी बातें मानें. ऐसे में बच्चों के मन की एक्साइटमेंट और सवाल पूछने की इच्छा इतनी बढ़ जाती है कि वह इसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं. साथ ही, ऐसे घरों में डिस्कशन का स्कोप खत्म हो जाता है. कई केसेज में इसका उल्टा भी होता है, जहां बच्चे बात करना ही बंद कर देते हैं क्योंकि वह पैरेंट्स से डरने लगते हैं.
जब हर चीज में परफेक्शन मांगी जाए
हर पैरेंट्स अपने बच्चों को तरक्की करता देखना चाहते हैं. लेकिन जब पैरेंट्स अपने बच्चों के लिए सक्सेस का एक लेवल सेट कर देते हैं, जिसे उन्हें क्रॉस करना ही होता है तो कंडीशन खराब हो जाती है. इससे बच्चा सिर्फ प्रेशर फील करता है और एंग्जाइटी के साथ जीने लगता है. इस तरह की पेरेंटिंग जल्द ही टॉक्सिसिटी में कन्वर्ट हो जाती है.
जब केयर के नाम पर कंट्रोल किया जाए
स्ट्रिक्ट पैरेंट्स अक्सर अपने बच्चों पर पाबंदियां लगाते हैं, जैसे यहां नहीं जाना, वहां नहीं जाना. इससे बच्चे का कुछ भी पर्सनल नहीं रहता और उसके करियर से लेकर लाइफ पार्टनर तक हर चीज पैरेंट्स ही डिसाइड करने लगते हैं. ऐसे में ये बेहद टॉक्सिक सिचुएशन होती है और बच्चा कभी भी इंडिपेंडेंट नहीं बनता और पूरी जिंदगी डरकर की गुजार देता है.
जब इमोशंस को वीकनेस समझा जाए
कुछ स्ट्रिक्ट पैरेंट्स अपने बच्चों को अपने इमोशंस जैसे दर्द, उदासी और कमजोरियों को दबाकर रखने पर मजबूर करते हैं ताकि कोई उनका फायदा न उठा सकें. लेकिन ऐसा करना बिल्कुल गलत होता है और ये टॉक्सिसिटी की निशानी होती है.
जब प्यार एक शर्त बन जाए
कई घरों में पैरेंट्स अपने बच्चों को डिसिप्लिन और अचीवमेंट्स लाने पर ही प्यार करते हैं. यहां बच्चों को तारीफ और शाबाशी न के बराबर मिलती है. बच्चों को लगने लगता है कि प्यार सिर्फ अच्छे मार्क्स लाकर या मेडल-ट्रॉफीज लाने पर ही मिलता है. ऐसे में इस तरह की पेरेंटिंग बच्चे और पैरेंट्स दोनों के लिए खतरनाक होती है और उनके बीच का रिलेशन खराब कर देती है.
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