Jutha khana sahi ya galat: हिंदू धर्म में जूठा या बचा हुआ भोजन (खाना या चखना) अशुद्ध माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार, जूठा भोजन खाने से मन, मस्तिष्क और स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव देखने को मिलते हैं. आज के दौर में जूठा खाने से प्यार बढ़ता है, खासकर पति पत्नी के बीच भोजन खाने को लेकर इस तरह की कई बातें प्रचलित हैं.
ऐसे में एक बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या सच में पति-पत्नी एक दूसरे का जूठा खा सकते हैं? जानिए इसको लेकर शास्त्र में क्या कहा गया है?
शास्त्रों में जूठे खाने को लेकर क्या कहा गया है?
हिंदू धर्म ग्रंथों में पति-पत्नी को एक दूसरे का जूठा खाने को लेकर कई तरह की बातें लिखी हुई. कुछ धार्मिक मान्यताएं इसे सही करार देते हैं, जबकि कुछ धार्मिक ग्रंथों में इसे अशुद्धता से जोड़कर देखा जाता है.
मनुस्मृति के अनुसार पति-पत्नी का आपस में भोजन साझा करना उनके रिश्ते को मजबूत करने के साथ साथ विश्वास को भी बढ़ाता है.
भट्ट धर्म ग्रंथ के अनुसार पति-पत्नी के बीच जूठा खाना स्वीकार्य है, ये उनके स्नेह और सहमति को दर्शाता है.
विष्णु और भागवत पुराण के अनुसार पति पत्नी के बीच आपसी प्रेम और सहमति है तो वह एक दूसरे का जूठा भोजन कर सकते हैं.
पत्नी का जूठी थाली में खाना
वही कुछ मान्यताओं और संस्कृति में पत्नी हमेशा पति की जूठी थाली में ही खाती हैं. ये मान्यताएं आज भी गांव घरों में देखने को मिल जाती है, जहां पत्नी हमेशा पति की जूठी थाली में से ही खाती है.
बॉलीवुड एक्टर सान्या मल्होत्रा की फिल्म Mrs में एक सीन आता है, जब महिला अपने पति की जूठी थाली में खाना खाती है. हालांकि समय के साथ इस तरह के अपवाद काफी कम हुए हैं. आधुनिक दौर में इस तरह की चीजें कम हुई है, लेकिन पूरी तरह से खत्म होना ये कह पाना मुश्किल है.
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