
ऐसे लक्षण अक्सर पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) या गंभीर एंग्जायटी डिसऑर्डर में दिखाई देते हैं. बच्चे या किशोर उस घटना को बार-बार याद करते हैं और उससे जुड़े डर से परेशान रहते हैं.

स्कूल से जुड़ी बार-बार की चिंता या डर से नींद पर असर पड़ता है. कई बार छात्र क्लास में जाने से डरते हैं या पढ़ाई में मन नहीं लगता. यह उनकी पढ़ाई और सामाजिक जीवन दोनों पर असर डालता है.

कुछ बच्चों में यह डर सिर्फ यादों तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि हृदय की धड़कन तेज होना, पसीना आना, या हल्का चक्कर आना जैसी शारीरिक प्रतिक्रियाएं भी होती हैं.

डॉक्टर और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर यह डर लगातार रहता है और दैनिक जीवन को प्रभावित करता है, तो समय पर मेडिकल और मनोवैज्ञानिक सहायता लेना बेहद जरूरी है.

थेरैपी, जैसे कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT), बच्चों और युवाओं में PTSD और एंग्जायटी को कम करने में मददगार साबित होती है. इसके अलावा परिवार का सपोर्ट और समझ भी बहुत महत्वपूर्ण है.

माता-पिता और शिक्षक ध्यान दें कि बच्चे को डर या चिंता महसूस हो रही है तो उसे आलोचना न करें. प्यार, समझ और सही गाइडेंस से डर को कम किया जा सकता है.

याद रखें, बार-बार स्कूल का बुरा दौर डराना सिर्फ मानसिक कमजोरी नहीं है. यह एक सिग्नल है कि बच्चे को विशेषज्ञ की मदद और परिवार का सहारा चाहिए, ताकि वह फिर से आत्मविश्वासी और सुरक्षित महसूस कर सके.
Published at : 09 Sep 2025 01:37 PM (IST)