2 घंटे पहलेलेखक: आशीष तिवारी
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फिल्ममेकर अनुराग कश्यप फिल्मों के अलावा अपने बेबाकपन के लिए जाने जाते हैं। हिंदी सिनेमा को लेकर लगातार अपनी राय रखते हैं, जिसकी वजह से उन्हें आलोचना भी झेलनी पड़ती है। अनुराग इंडस्ट्री में नए चेहरों को मौका देने के लिए भी जाने जाते हैं। उनकी फिल्मों से निकले एक्टर आज इंडस्ट्री में बड़ा नाम बन चुके हैं।
इस वक्त अनुराग की फिल्म ‘निशांची’ सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म से भी दो नए चेहरों ने अपना डेब्यू कर लिया है। इस फिल्म के प्रमोशन के दौरान डायरेक्टर ने दैनिक भास्कर से बातचीत में नए टैलेंट, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के अलावा और कई मुद्दों पर अपनी बेबाक राय शेयर की है।
आपको लगता है कि अनुराग कश्यप अब ऐसा नाम बन गया है कि एक्टर्स भरोसा करने लगते हैं?
हां, एक्टर्स भरोसा करते हैं। कई बार एक्टर्स बहुत कुछ उम्मीद भी करते हैं लेकिन हर बार वो हो नहीं पाता है। रोल के हिसाब से कास्टिंग होती है। मेरे लिए कास्टिंग एक साइंस है। अब सही रोल में सही समय पर सही एक्टर को कास्ट करो तो वो पर्दे पर कमाल दिखता है। अगर आपने कास्टिंग गलत कर दी तो चीजें गड़बड़ हो जाती है।
आपकी फिल्मों से कई अच्छे एक्टर निकल कर आए हैं। आज वो सारे एक्टर इंडस्ट्री का बड़ा नाम हैं और अच्छा काम कर रहे हैं।
मुझे बहुत खुशी होती है। मैं दूसरों की ग्रोथ से सच में बहुत खुश होता हूं। मुझे दिक्कत तब होती है, जब इंडस्ट्री में एक-दूसरे को गिराने की कोशिश होती है।

आपके अंदर कोई इनसिक्योरिटी नहीं दिखती। आप पहली फिल्म के बाद ही अपने एक्टर को कह देते हैं कि उनके साथ दोबारा काम नहीं करेंगे?
हां, मैं अपने साथ काम करने वाले एक्टर्स को पुश करता हूं। मैं उन्हें कहता हूं कि वो बाहर जाकर काम करें। जब आप एक साथ कई फिल्म करते हैं तो आप भी अटक जाते हैं। लोग आपकी जोड़ी बना देते हैं और जोड़ी के साथ फिर एक तरह की फिल्मों की ही उम्मीद की जाती है। ऐसा नहीं है कि मैं दोबारा एक्टर्स के साथ काम नहीं करता। विनीत कुमार के साथ मैंने सबसे ज्यादा काम किया है।
मैं नवाजुद्दीन सिद्दीकी और बाकियों के साथ दोबारा फिल्में बनाऊंगा। मैं भी दोबारा इन सबके साथ काम करना चाहता हूं। जयदीप अहलावत इतने अच्छे एक्टर हैं लेकिन मुझे दोबारा उनके साथ काम करना का मौका नहीं मिला। मेरी दिली इच्छा है कि मैं उसके साथ दोबारा काम करूं लेकिन मेरे पास कोई कहानी नहीं है।
ऐसा लगता है कि आप नए टैलेंट पर बहुत ज्यादा भरोसा करते हैं?
ऐसा नहीं है लेकिन जब कोई एक्टर बहुत व्यस्त हो जाता है फिर मैं उसके साथ काम करने को लेकर घबराने लगता हूं। मुझे लगता है कि पता नहीं वो मेरी फिल्म कर पाएंगे या नहीं। हालांकि, कुछ एक्टर ऐसे भी हैं, जो कितने भी व्यस्त हो जाए वो अपनी एक्टिंग से कंप्रोमाइज नहीं करते। जैसे जयदीप अहलावत।
मैंने उन्हें स्टेज पर देखा था। फिर वो फिल्म ‘चिटगॉन्ग’ से ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में आए। उसके बाद मैं फिल्म ‘अगली’ और ‘बॉम्बे वॉलेट’ बनाने में व्यस्त हो गया। दो-तीन सात तक मैंने जयदीप का कोई काम नहीं देखा। फिर अचानक मैंने उन्हें ‘पताललोक’ के हाथीराम चौधरी के रूप में देखा। मैंने उम्मीद ही नहीं की थी कि वो इतना शानदार काम करेंगे। उन्हें कहां से शुरुआत की थी। फिर जब सीजन 2 में देखा तो उन्हें नेक्स्ट लेवल का काम किया था। फिर मैंने उन्हें शेफाली शाह के साथ फिल्म ‘थ्री ऑफ अस’ में देखा। उसमें एक अलग जयदीप दिखा। मेरा रिएक्शन था कि ये तो कुछ अलग लेवल पर परिपक्व हो चुका है।

जयदीप अहलावत, मनोज बाजपेयी और नवाजुद्दीन सिद्दिकी तीनों अनुराग की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर में साथ काम कर चुके हैं।
नवाज तो मेरे लिए खास हैं। उनको मैं इतने सालों से जानता हूं और उनकी जर्नी को देखा है। उन्होंने पहला रोल ‘शूल’ में मिला था, सिर्फ 500 रुपए को लिए। उन्हें वो पैसे आज तक नहीं मिले हैं। फिर मैंने उन्हें आमिर खान के साथ ‘सरफरोश’ में देखा। फिर मैं जब ‘ब्लैक फ्राइड’ शूट कर रहा था, तब उनके अंदर मुझे कुछ खास दिखा। जो मेरे दिमाग में काफी समय तक रहा। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में उनके लिए कोई रोल क्रिएट कर पाऊं, इसमें मुझे 14 साल लग गए। लेकिन जब वो किरदार पर्दे पर आया तो सफल हुआ। मेरे पास अब जब तक कुछ नया नहीं आएगा, मैं दोबारा उनके पास नहीं जाऊंगा।
मेरी भी बहुत सारी तमन्नाएं हैं। बच्चन साहब के साथ काम करने की मेरी तमन्ना अभी तक अधूरी है। मुझे अभी कहानी मिली है और मैं लिख रहा हूं। मेरी ये तमन्ना अधूरी नहीं रहनी चाहिए।
आपके बारे में लोगों की राय है कि आपको बॉलीवुड इंडस्ट्री से थोड़ी कोफ्त है।
कोफ्त नहीं है। यहां पर सिनेमा की बात होनी बंद हो गई है। यहां पर सिर्फ बॉक्स ऑफिस की बात होती है। मैं इन चीजों से दूर हो गया हूं। मैं हिंदी फिल्में बनाना बंद नहीं करूंगा। मैं लगातार हिंदी फिल्में बना रहा हूं। लेकिन हिंदी फिल्म बनाने के लिए मेरा मुंबई में रहना जरूरी नहीं है। मैं मुंबई छोड़कर चला गया। जब मेरी जरूरत होती है तो मैं वापस आ जाता हूं।
ऑडियंस का एक तबका राइटिंग, डायरेक्शन के अलावा आपके एक्टिंग का भी फैन है। उनके लिए क्या कहेंगे?
कुछ लोगों के लिए एक्टिंग पैशन होता है। मेरे लिए एक्टिंग मजबूरी है। मुझे एक्टिंग का शौक नहीं है। मैं आपको मैं सिंपल गणित समझाता हूं। बतौर डायरेक्टर एक फिल्म को मैं डेढ़-दो साल देता हूं। बतौर एक्टर में किसी प्रोजेक्ट को 35-40 दिन देता हूं। इन चालीस दिन में मैं उतने ही पैसे कमाते हूं, जितना एक फिल्म बनाने में।

अनुराग हिंदी और साउथ की कई फिल्मों में निगेटिव रोल में नजर आ चुके हैं।
एक्टिंग कभी-कभी मेरे लिए फाइनेंशियल रीजन है। कई दफा कोई चीजें लंबी खींच जाती है और वो फाइनेंशियली आप पर भारी पड़ती है। ऐसे में एक्टिंग एक साधन बन जाता है। मेरे लिए एक्टिंग एक सुविधा और मजबूरी है।