बिहार चुनाव 2025: त्रिवेणीगंज सीट पर कायम रहेगा JDU का दबदबा? 2009 के उपचुनाव में खुला था खाता

बिहार चुनाव 2025: त्रिवेणीगंज सीट पर कायम रहेगा JDU का दबदबा? 2009 के उपचुनाव में खुला था खाता



त्रिवेणीगंज विधानसभा का राजनीतिक महत्व और सामाजिक विविधता इसे बिहार की एक महत्वपूर्ण विधानसभा सीट बनाती है. सुपौल जिले के अंतर्गत आने वाली त्रिवेणीगंज विधानसभा सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है, जो अपनी सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक पहचान के लिए जानी जाती है.

1957 में पहली बार इस सीट पर हुआ था चुनाव

त्रिवेणीगंज विधानसभा सीट पर 1957 में पहली बार चुनाव हुआ था. उस दौरान इस सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया. इस सीट को 1962 से 2009 तक सामान्य श्रेणी में रखा गया, लेकिन 2010 से इसे दोबारा आरक्षित घोषित किया गया. 1957 से 1962 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा, लेकिन समय के साथ संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी और जनता दल ने भी यहां जीत का परचम लहराया.

2000 में इस सीट पर आरजेडी का कब्जा रहा, जबकि 2005 के चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी ने जीत हासिल की. पहली बार 2009 के उपचुनाव में यहां जेडीयू का खाता खुला, तब से यह सीट जेडीयू के पास है. 2010 में जेडीयू की अमला देवी और 2015-2020 में वीणा भारती ने जीत दर्ज की. 2020 के विधानसभा चुनाव में वीणा भारती ने आरजेडी के संतोष कुमार को 3,031 वोटों से हराया था. उनकी जीत का फायदा पार्टी को लोकसभा चुनाव 2024 में भी मिला और यहां को बड़ी बढ़त मिली थी.

चुनाव आयोग के अनुसार, 2020 के विधानसभा चुनाव में त्रिवेणीगंज में 2,86,147 रजिस्टर्ड मतदाता थे, जिनमें 18.53 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 14.90 प्रतिशत मुस्लिम और 21.70 प्रतिशत यादव समुदाय के थे. 2024 तक मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3,09,402 हो गई है.

बाढ़ की समस्या से जूझता है यह क्षेत्र

त्रिवेणीगंज विधानसभा सीट के आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण पर नजर डालें तो यह इलाका कोसी नदी के तट पर स्थित है और हर साल इस क्षेत्र को बाढ़ की समस्या का सामना करना पड़ता है. यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से धान, मक्का और जूट की खेती पर आधारित है. कोसी नदी खेती का आधार तो है, लेकिन बाढ़ का प्रमुख कारण भी यही है.

रोजगार के सीमित अवसरों और कृषि आधारित उद्योगों की कमी के चलते युवाओं का पलायन एक बड़ी समस्या है. सड़क, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं भी अपर्याप्त हैं. क्षेत्र की चुनौतियों के बावजूद यह सीट बिहार की राजनीति में एक खास स्थान रखती है.



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