Premanand Maharaj: पाप कम करने के 4 संकेत क्या हैं? जानिए प्रेमानंद महाराज से इसका रहस्य

Premanand Maharaj: पाप कम करने के 4 संकेत क्या हैं? जानिए प्रेमानंद महाराज से इसका रहस्य



Premanand maharaj: प्रेमानंद महाराज के अनुसार, पाप घटने या बढ़ने का निर्धारण इस बात पर डिपेंड करता है कि, आप अपने जीवन में ईश्वर से कितना जुड़ते हैं. अगर कोई व्यक्ति दूसरों को दुख देकर या दिखावा करके भक्ति करता है, तो उसके पाप कम कभी नहीं हो सकते हैं.

वहीं, जब कोई व्यक्ति ईश्वर के साथ सच्चा रिश्ता बनाता है, सच्चे दिल से ईश्वर को याद करता है और अपनी गलतियों के लिए ईश्वर से क्षमा मांगता है. वो अपने हर सुख-दुख को ईश्वर के साथ बांटता है, तो उसके पाप कम होने लगते हैं.

प्रेमानंद महाराज के अनुसार पाप घटने के चार संकेत 

ईश्वर का अनुभव
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, पाप घटने का सबसे बड़ा संकेत है कि, ईश्वर का अनुभव होने लगता है और व्यक्ति मांग, छल, कपट और चतुराई से मुक्त हो जाता है.

जब कोई भक्त ईश्वर को पूरी तरह समर्पित कर देता है, तो उसके मन में कामनाएं नहीं रहतीं और यह पाप के क्षय होने का एक प्रमाण है. इसके अलावा, भगवान के नाम का निरंतर जप करने से भी पाप कम हो सकते हैं और पापों के प्रभाव को खत्म किया जा सकता है.

कामनाओं से मुक्ति
प्रेमानंद महाराज के अनुसार पाप घटने और कामनाओं से मुक्ति के लिए नाम जाप, पश्चाताप, सच्चाई, दान-पुण्य, और शरणागति महत्वपूर्ण हैं. इसके लिए भगवान के नाम का निरंतर जाप करें, अपने पापों पर पश्चाताप करें और सत्य का मार्ग अपनाएं.

अहंकार, लोभ और क्रोध जैसे विकारों को त्यागने के लिए भगवान के भजन और सत्संग करें, क्योंकि ये ही कामनाओं से मुक्ति दिलाते हैं.

अभिमान का अंत
प्रेमानंद महाराज के अनुसार अभिमान का त्याग करने से पाप घटने लगते हैं, क्योंकि अभिमान को वे एक बड़ा पाप मानते हैं, और सच्चे पश्चाताप, विनय और विनम्रता से ही पापों से मुक्ति मिलती है. जब मन अभिमान को छोड़कर विनम्र होता है, तो पापों को नष्ट करने का मार्ग प्रशस्त होता है.

शुद्ध व्यवहार
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, अच्छा व्यवहार (शुद्ध आचरण) अपनाने से पाप में कमी आती है, क्योंकि जब तक किसी का व्यवहार और आचरण अच्छा नहीं होता, तब तक वह कभी भी कल्याण नहीं कर सकता.

महाराज जी के अनुसार, दिखावा, दूसरों को कष्ट देना या पाखंड करने से कोई पाप नहीं मिटता. सच्चा कल्याण तभी संभव है जब व्यक्ति के विचार और कर्म शुद्ध हों.

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