Govardhan Puja 2025: जब बाल कृष्ण ने तोड़ा इंद्र का अभिमान और सिखाया प्रकृति का महत्व

Govardhan Puja 2025: जब बाल कृष्ण ने तोड़ा इंद्र का अभिमान और सिखाया प्रकृति का महत्व


पौराणिक कथाओं के अनुसार वृन्दावन में एक बार घने बादल छा गए. ग्रामीण बहुत डर गए. स्वर्ग के राजा इंद्र के क्रोध से वे काँप उठे. इंद्र इस बात से क्रोधित थे कि उन्होंने अब उन्हें अनुष्ठानिक बलि देना बंद कर दिया था. इससे नाराज होकर उन्होंने भरी बारिश और तूफान चलाया.

पौराणिक कथाओं के अनुसार वृन्दावन में एक बार घने बादल छा गए. ग्रामीण बहुत डर गए. स्वर्ग के राजा इंद्र के क्रोध से वे काँप उठे. इंद्र इस बात से क्रोधित थे कि उन्होंने अब उन्हें अनुष्ठानिक बलि देना बंद कर दिया था. इससे नाराज होकर उन्होंने भरी बारिश और तूफान चलाया.

वृन्दावन में चारों ओर अंधेरा छा गया. तभी चरवाहा बाल रूप में कृष्ण शांत और प्रसन्न मुस्कान के साथ खड़े थे. उनके भीतर न केवल बालपन की चंचलता थी, बल्कि एक दिव्य शक्ति भी थी. जो यह भयावहता को देख रही थी.

वृन्दावन में चारों ओर अंधेरा छा गया. तभी चरवाहा बाल रूप में कृष्ण शांत और प्रसन्न मुस्कान के साथ खड़े थे. उनके भीतर न केवल बालपन की चंचलता थी, बल्कि एक दिव्य शक्ति भी थी. जो यह भयावहता को देख रही थी.

कहा जाता है कि तभी कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया. वह पर्वत वृन्दावन के लोगों और मवेशियों के लिए एक विशाल छतरी बन गया. सात दिन और सात रात तक बारिश हुई, पर किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा.

कहा जाता है कि तभी कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया. वह पर्वत वृन्दावन के लोगों और मवेशियों के लिए एक विशाल छतरी बन गया. सात दिन और सात रात तक बारिश हुई, पर किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा.

सभी वृन्दावन के लोग पर्वत के नीचे आ गए. उनका डर विश्वास में बदल गया. उन्हें और उनके मवेशियों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं हुआ. इंद्र का अहंकार टूट गया. उसके बाद वर्षा थम गई. सूर्य फिर से चमक उठे.

सभी वृन्दावन के लोग पर्वत के नीचे आ गए. उनका डर विश्वास में बदल गया. उन्हें और उनके मवेशियों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं हुआ. इंद्र का अहंकार टूट गया. उसके बाद वर्षा थम गई. सूर्य फिर से चमक उठे.

मान्यता है कि इस घटना के बाद ग्रामीणों ने कृष्ण और गोवर्धन पर्वत — दोनों को प्रणाम किया. उसी समय से गोवर्धन पूजा का जन्म हुआ. और तभी से यह परंपरा चली आ रही है. जो दीपावली के अगले दिन मनाई जाती है. यह पर्व याद दिलाता है कि ईश्वर हर रूप में हमारी रक्षा करते है.

मान्यता है कि इस घटना के बाद ग्रामीणों ने कृष्ण और गोवर्धन पर्वत — दोनों को प्रणाम किया. उसी समय से गोवर्धन पूजा का जन्म हुआ. और तभी से यह परंपरा चली आ रही है. जो दीपावली के अगले दिन मनाई जाती है. यह पर्व याद दिलाता है कि ईश्वर हर रूप में हमारी रक्षा करते है.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इंद्र का वज्र केवल आकाशीय नहीं था, वह अहंकार का प्रतीक था. जब ईश्वर एक साधारण बच्चे के रूप में प्रकट हुए, तब शक्ति पर विनम्रता की विजय हुई. यह दिन खुद के भीतर झाँकने का दिन है. जब जीवन में अहंकार और भय के तूफ़ान उठते हैं, तब हमें उस से डरना नहीं बल्कि धैर्य बनाना चाहिए और विश्वास बनाए रखना चाहिए.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इंद्र का वज्र केवल आकाशीय नहीं था, वह अहंकार का प्रतीक था. जब ईश्वर एक साधारण बच्चे के रूप में प्रकट हुए, तब शक्ति पर विनम्रता की विजय हुई. यह दिन खुद के भीतर झाँकने का दिन है. जब जीवन में अहंकार और भय के तूफ़ान उठते हैं, तब हमें उस से डरना नहीं बल्कि धैर्य बनाना चाहिए और विश्वास बनाए रखना चाहिए.

Published at : 22 Oct 2025 09:44 AM (IST)



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