Konark Sun Temple: कोणार्क का सूर्य मंदिर सूर्य देव के बड़े मंदिरों में से एक है. इसका निर्माण 13वीं शताब्दी में गंगा वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम ने करवाया था. पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब ने कुष्ठ रोग से मुक्ति पाने के लिए सूर्य देव की कठोर तपस्या की थी.
उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य देव प्रकट हुए और उसी स्थान पर इस मंदिर के निर्माण की प्रेरणा मिली. यह मंदिर सूर्य के रथ के रूप में बनाया गया है, जिसमें बारह विशाल पहिए हैं जो सूर्य घड़ी का काम करते हैं.
कोणार्क का सूर्य मंदिर प्राचीन भारतीय वास्तुकला का शानदार उदाहरण है. मंदिर का आकार ऐसा है जैसे सूर्य देव सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर आकाश में विचरण कर रहे हैं.
अपनी स्थापत्य कला और नक्काशी के कारण यह मंदिर आज यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में दर्ज है. रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसके बारे में कहा था- यह वह स्थान है जहां पत्थर की भाषा, मनुष्य की भाषा से भी अधिक प्रभावशाली लगती है।
पौराणिक महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब ने कभी नारद मुनि का अपमान कर दिया था. इससे उन्हें कुष्ठ रोग हो गया. साम्ब ने चंद्रभागा नदी के तट पर सूर्य देव की कठोर तपस्या की. सूर्य देव की कृपा से उन्हें रोग से मुक्ति मिली.
तपस्या के बाद जब वे नदी में स्नान कर रहे थे, तो उन्हें सूर्य देव की एक मूर्ति मिली, जिसे किसी कुशल शिल्पी ने बनाया था. साम्ब ने इस मूर्ति को कोणार्क में स्थापित किया. फिर बाद में यही पर मंदिर का निर्माण हुआ था. रथ के बारह जोड़ी पहिये हिंदू कैलेंडर के 12 महीनों के प्रतीक के रूप में है. प्रत्येक महीने को दो चक्रों (शुक्ल और कृष्ण) में जोड़ा गया है.
वास्तुकला और विशेषताएं
मान्यता है कि कोणार्क का सूर्य मंदिर सूर्य के रथ के रूप में बनाया गया है. इसमें 24 विशाल पहिए हैं, जो दिन के 24 घंटों का प्रतीक हैं. नक्काशी ऐसी है कि इसे सात घोड़े खींचते हुए नजर आते हैं.
कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 1250 ई. में पूर्वी गंगा राजा नरसिंह देव प्रथम के शासनकाल के दौरान पत्थर से एक विशाल अलंकृत रथ के रूप में किया गया था, जो सूर्य देवता, सूर्य को समर्पित था. सात घोड़ों का नाम गायत्री, बृहती, उष्णिह, जगती, त्रिष्टुभ, अनुष्टुभ और पंक्ति के नाम पर है.
मंदिर की दीवारों पर सुंदर नक्काशियाँ हैं, जिनमें पौराणिक कथाएं, जीव-जंतु और दैनिक जीवन के दृश्य उकेरे गए हैं. मंदिर की संरचना ऐसी है कि सूर्य की पहली किरणें सीधे गर्भगृह में स्थित सूर्य देव की मूर्ति पर पड़ती हैं.
इससे पौराणिक कथाओं की मान्यताएं प्रमाणिक लगती हैं. ऐतिहासिक महत्व के कारण सन् 1984 में कोणार्क सूर्य मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था.
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