30 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी
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एक्टर दीपक डोबरियाल इस वक्त फिल्म ‘जुगनुमा’ में नजर आ रहे हैं। पहाड़ों की जिंदगी पर आधारित इस फिल्म की हर जगह तारीफ हो रही है। साथ ही, फिल्म से जुड़े एक्टर्स की भी सराहना हो रही है। सीरियस रोल हो या कॉमेडी दीपक हर किरदार में अपनी छाप छोड़ते हैं। ‘जुगनुमा’ में भी उनके किरदार को सराहा जा रहा है। दैनिक भास्कर इंटरव्यू में एक्टर ने इस फिल्म और एक्टिंग करियर को लेकर खुलकर बातें की हैं।
‘जुगनुमा’ से आपने जुड़ने का फैसला क्यों किया? स्क्रिप्ट में क्या पसंद आया?
मुझे ‘जुगनुमा’ की हर बात पसंद है। इस फिल्म के बनने का प्रोसेस, डायरेक्शन सब कुछ बढ़िया था। आपने इतना कन्विक्शन के साथ डायरेक्शन नहीं देखा होगा, जहां पर कैनवास एक पूरा पैराग्राफ, डायलॉग या मोनोलॉग बोलने जितना जरूरी है। एक शॉट की ब्यूटी को लेकर जो कमिटमेंट था। जैसे कि सूरज पेड़ के नीचे आ गया और सनलाइट कम हो गई है, ऐसे में शूट को रोक दिया जाता था। परफेक्ट सीन के लिए अगले दिन फिर से शूट किया जाता था।

विजुअल अपने आप में एक डायलॉग होता है। इस फिल्म में विजुअल बहुत बड़ा डायलॉग है क्योंकि वो नेचर को कमिटमेंट करते हुए दिखाया जा रहा है। ये कमिटमेंट कमाल था। इसके अलावा बिना बैकग्राउंड स्कोर की फिल्म है। आपने इस तरह की फिल्म नहीं देखी होगी, तो माइंड सेट टूटता है। लेकिन ऐसा करने के पीछे भी वजह है। फिल्म में डायरेक्शन, फोटोग्राफी, नेचर को जिस तरह से इस्तेमाल किया गया है, वो इसके पीछे का कारण है। इसके अलावा इसमें जितने भी एक्टर्स हैं, उनका भी कमिटमेंट कमाल है। उनको देखकर लगेगा ही नहीं कि एक्टर हैं।
आपके किरदार दर्शकों के जेहन में रह जाते हैं। उनमें पर खूब मीम्स भी बनते हैं। किसी भी किरदार को निभाने का क्या प्रोसेस रहता है?
हर फिल्म के लिए प्रोसेस अलग होता है। जैसे मेरी हालिया रिलीज फिल्म ‘जुगनुमा’ में कहानी और डायरेक्शन आपको कहां ले जा रही है। आपको इस हिसाब चलना होता है और खुद को ढालना होता है। अलग-अलग फिल्म में अलग माइंड सेट होता है। कोई भी पुराना प्रोसेस अगली फिल्म में काम नहीं आता है। मैं खुद प्रोसेस रिपीट नहीं करता हूं क्योंकि तभी किरदार में नयापन आ पाएगा। आप कहानी, डायरेक्टर या सीन के हिसाब से भांप लेते हो कि कहानी किस डायरेक्शन में जा रही है।

‘तनु वेड्स मनु’ में दीपक को उनके रोल के लिए अवॉर्ड भी मिले।
आपको अपनी फिल्मों का कौन सा किरदार सबसे चैलेंजिंग लगा है?
मैं तो कहूंगा सभी रोल चैलेंजिंग थे। जैसे ‘तनु वेड्स मनु’ के मेरे किरदार के बारे में मेरे दोस्त की राय है कि मैं पप्पी का किरदार को चलते-चलते भी निभा सकता हूं। वो मुझसे कहते हैं कि 10 मिनट में तू 15 तनु वेड्स मनु का रोल कर देगा। लेकिन ऐसा नहीं है। उसमें मैंने आवाज बहुत पतली रखी थी। मेरी आवाज बहुत ज्यादा आर्टिफिशियल थी। उस किरदार में था कि एक आदमी है, जो बातूनी है। सुबह से रात तक बात करता है और उसकी आवाज में पतलापन है। मैंने इस किरदार के लिए कई सारे एक्सपेरिमेंट भी किए थे। सभी किरदार मुश्किल होते हैं, बस बात इतनी है कि उस किरदार को ऑडियंस कितनी मिलती है।
फिल्म ’सेक्टर 36’ का किरदार काफी अलग है। आपके लिए इंस्पेक्टर राम चरण पांडेय का किरदार निभाना कितना मुश्किल रहा?
किरदार मुश्किल नहीं था, सीन में रहना बहुत जरूरी था। मेरे लिए खुशी की बात ये है कि चंद डीओपी और डायरेक्टर हैं, जिन्होंने मेरे किरदार पर कैमरा होल्ड किया है। जब आपके ऊपर कैमरा ज्यादा देर के लिए रुकेगा, तब आपको अपनी एक्टिंग दिखाने का मौका मिलता है। इस फिल्म के सिनेमेटोग्राफर सौरभ गोस्वामी और आदित्य ने मिलकर मुझे वो स्पेस दिया है।

फिल्म सेक्टर 36 के एक सीन में विक्रांत मैसी के साथ दीपक।
जब कैमरा आपके किरदार पर लंबे समय के लिए होल्ड होता, तब आप बहुत रिस्पेक्टेड फील करते हैं। ऐसे में आप फैलने के बजाए और फोकस्ड होकर काम करते हैं। मैं अपने किरदार में आर्टिफिशियल होने से बचने की कोशिश करता हूं। अपनी मासूमियत और उमंग को बचाए रखता हूं। इसी में गंभीर से लेकर हर तरह के रोल आ जाते हैं। यही मासूमियत आपको आगे ले जाती है।
आपने मनोज बाजपेयी, इरफान खान, आर माधवन जैसे कई दिग्गज कलाकारों के साथ स्क्रीन शेयर किया है। एक्सपीरियंस आर्टिस्ट के साथ काम करने की लर्निंग बताइए।
बहुत बढ़िया एक्सपीरियंस है। जब बड़े एक्टर साथ होते हैं तो आपको अपने क्राफ्ट को परखने का मौका मिलता है। मेरे लिए दिग्गज एक्टर्स के साथ काम करना एक मेजरमेंट का काम करता है। मुझे बहुत खुशी है कि मैंने भारत के लगभग सारे दिग्गज एक्टर्स के साथ काम किया है।
मुझे अब तक अमिताभ बच्चन, परेश रावल , बोमन ईरानी, गोविंदा और राजपाल यादव के साथ काम करने का मौका नहीं मिला है। इन पांचों को मैं बहुत बड़ा एक्टर मानता हूं। इनको छोड़कर मैंने तकरीबन सारे दिग्गजों के साथ काम किया है। जब आप दिग्गजों के साथ काम करते हैं, तब आपके हुनर का सही पता चल जाता है। आप एक्टिंग में कहां पर ये असलियत पता चल जाती है।
आपने मनोज बाजपेयी, इरफान खान और केके मेनन से क्या सीखा है?
मुझे तीनों से ही अलग-अलग चीजें सीखने के मिली। मनोज भाई से मैंने डेडिकेशन सीखा है। मनोज भाई के पास स्क्रिप्ट बहुत प्यारी-प्यारी जाती है। मुझे उनसे ये भी सीखना है कि अच्छी स्क्रिप्ट कैसे करते हैं। हालांकि, मुझे लोगों को पटाना नहीं आता है। मैं चाहता हूं कि स्क्रिप्ट मुझे खुद ढूंढ ले। इरफान भाई की संगत बहुत अच्छी थी। उनके पास जो लोग आते थे, वो लिटरेचर से जुड़े होते थे।
केके भाई का क्लास,डिग्निटी और काम को लेकर कंविक्शन। उनका अप्रोच और समझ एक अलग लेवल की है। मैं विजय राज भाई का भी नाम लेना चाहूंगा। वो एक अलग और साधु आदमी हैं। अगर उन्हें किरदार मन मुताबिक मिल गया फिर क्या ही परफॉर्मेंस देते हैं।
क्या सच में आपको पहली फिल्म चाउमीन की लालच में मिली थी। इस पूरी कहानी के पीछे के पीछे की सच्चाई बताएं?
मेरा राजीव नाम का एक दोस्त है। स्ट्रगल के दिनों में हम साथ रहते थे। हम दोनों ही एक्टिंग में करियर बनाने आए थे। जब विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘मकबूल’ की कास्टिंग हो रही थी, उसे कहीं से ये बात पता चली। उसने कहा ऑडिशन के लिए चलो। मैंने मना कर दिया क्योंकि मेरा मन नहीं था। फिर उसने ऐसे ही कह दिया कि चल रात में चाउमीन खिलाऊंगा। मैंने उसका ये ऑफर सुन हामी भर दी क्योंकि खाना हम दोनों को ही बनाना पड़ता था।

दीपक इरफान खान के साथ ओमकारा के अलावा हिंदी मीडियम और अंग्रेजी मीडियम में काम कर चुके हैं।
मुझसे उसने कहा कि तुम भी अपनी फोटो रख लो। मेरी कोई दिलचस्पी थी नहीं तो मैंने अपनी फोटो भी नहीं ली लेकिन उसने रख ली। जब वहां पहुंचे तो पता चला कि विशाल जी इरफान भाई के साथ रहने वाला एक किरदार के लिए एक्टर ढूंढ रहे हैं। जो सिर्फ इरफान भाई का राइट हैंड ना लगे बल्कि एक्टर भी हो। उस रोल के लिए मेरे दोस्त का सिलेक्शन नहीं हुआ और विशाल जी ने मुझे रख लिया। फिर मेरे दोस्त ने कहा कि अब चाउमीन तुम खिलाओगे। मैंने उसे एक बार नहीं 15-20 बार चाऊमीन खिलाई होगी।
मीडिया वाले इस कहानी को ऐसी हेडिंग के साथ पब्लिश करते हैं कि चाउमीन के लालच में मिली पहली फिल्म। मैं पढ़कर सोचता हूं कि ये कैसी वाहियात लाइन है। जबकि ये सच है ही नहीं।
आपके लिए सफलता के क्या मायने हैं?
मैं अगले रोल के लिए फिर से उत्साहित हो पाऊं, मेरे लिए ये सफलता है। अगले रोल के लिए मैं बच्चा बन पाऊं, जीरो से शुरू कर पाऊं, ये सफलता है। मैं अपनी मासूमियत बचकर रख पाऊं, ये सफलता है।
‘जुगनुमा’ के बाद आपके फैंस आपको किसी प्रोजेक्ट में देख पाएंगे?
मैं अपने फैंस से कहूंगा कि पहले वो ‘जुगनुमा’ देखें। ये बहुत प्यारी फिल्म है। आपको एक अलग तर्जुबा मिलेगा। फिल्म एक अलग दुनिया, एक अलग कैनवास, अलग डायरेक्शन, अलग फिलॉसफी और भी कई एलिमेंट को छूती है। पहाड़ों पर बहुत कम फिल्में बनी हैं। पहाड़ों पर फिल्म बनाने का प्रोसेस काफी मुश्किल होता है। इस फिल्म को बनाने में चार-पांच साल का समय लगा है। कभी कोविड, कभी बारिश तो कभी परमिशन नहीं मिलना, देरी की वजह बना। काफी चुनौतियों के बाद ये फिल्म थिएटर तक पहुंची है।
अमूमन मैं किसी फिल्म के लिए नहीं बोलता हूं लेकिन ‘जुगनुमा’ के लिए बोल रहा हूं। जो भी सिनेमा लवर हैं, कुछ अच्छा होते हुए देखना चाहते हैं तो वो प्लीज इस फिल्म को जरूर देखेंगे।