
प्रेमानंद महाराज जी अपने अद्भुत ज्ञान, शांतिपूर्ण प्रवचनों और भक्ति मार्ग की प्रेरणा देने के लिए प्रसिद्ध हैं. उनके प्रवचन न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से गहरे हैं, बल्कि जीवन के व्यवहारिक पहलुओं को भी सरल भाषा में समझाते हैं. वे युवाओं में आत्म-संयम और सकारात्मक सोच का संदेश फैलाने के लिए भी जाने जाते हैं.

प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि हर परिस्थिति में धैर्य रखें और भगवान पर विश्वास बनाए रखें. दुख हमेशा स्थायी नहीं होता, जैसे रात के बाद सवेरा आता है वैसे ही कठिनाइयों के बाद सुख भी अवश्य आता है. वे यह भी कहते हैं कि कठिन समय हमें मजबूत बनाता है, इसलिए भागने के बजाय परिस्थितियों से लड़ना सीखें और अपने कर्मों पर ध्यान दें.

उन्होंने कहा है कि “क्रोध को शांत करने का एकमात्र उपाय है अपना ध्यान वहाँ से हटाना है और दूसरी ओर लगाना है. दूसरों का हमारे प्रति क्या कर्तव्य है, इस पर सोचने की जगह, हमें यह सोचना चाहिए कि उनके प्रति हमारा क्या कर्तव्य है. मतलब यह सोचना कि “मुझे किसने बुरा किया” इससे बेहतर है “मैं इस स्थिति में क्या सकारात्मक कर सकता हूँ”. यह सोचना चाहिए.

महाराज जी कहते हैं कि जब कोई आपके प्रति द्वेष रखता है, तो यह हमेशा उस व्यक्ति के अहं-भाव, अपेक्षाओं या अधूरे अनुभवों का प्रतिबिंब होता है न कि आपके मूल्य का. इसलिए वो कहते हैं कि दूसरों की नकारात्मकता को अपने जीवन या आत्म-मूल्य से जोड़ कर मत देखें.

महाराज जी का उपदेश है कि जब हमारा मन शांत होगा, हमारा अहंकार कम होगा, तब ही हम द्वेष की ऊर्जा से ऊपर उठ सकते हैं. महाराज जी ने कई बार बताया है कि गुस्सा, द्वेष और मन का अशांत होना तभी शांत होता है जब हम नाम-जप, साधना, भक्ति में लीन हों.

महाराज जी कहते हैं: “यदि तुम पाप कर्म करोगे, तो चाहे जितना दान-पुण्य कर लो, वह तुम्हें पाप के कष्टों से नहीं बचा सकता. भजन का सहारा लो, ताकि जीवन के संघर्ष तुम्हें विचलित न कर सकें.” नाम जप से मानसिक शक्ति बढ़ती है. भगवान की शरण में जाने से जीवन के कष्ट कम होते हैं. भजन करने से आत्मा को शांति और स्थिरता मिलती है.
Published at : 19 Oct 2025 03:00 AM (IST)