Indian player Sushila’s grandmother said – they used to send her behind goats | बकरियां बेचकर किट दिलाई, अब इंडियन टीम की प्लेयर बनी: लोग कहते हैं- बेटी छोटे कपड़ों में दौड़ रही है, कुछ कहते क्यों नहीं – Barmer News

Indian player Sushila’s grandmother said – they used to send her behind goats | बकरियां बेचकर किट दिलाई, अब इंडियन टीम की प्लेयर बनी: लोग कहते हैं- बेटी छोटे कपड़ों में दौड़ रही है, कुछ कहते क्यों नहीं – Barmer News


राजस्थान की बेटी 13 सितंबर से चीन में होने वाले रग्बी एशिया कप में भारत के लिए खेलेगी। दादी कहती हैं- हमें तो बिटिया ने अमर कर दिया। बहुत रोकती थी कि ये लड़कों का खेल है। मालूम नहीं था कि वो छुप-छुप कर ट्रेनिंग लेगी और इतना आगे चली जाएगी।

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हम तो उसे बकरियों का ध्यान रखने के लिए भेजते थे। लेकिन, वो अपने कपड़ों में बॉल छिपा कर के जाती और वहीं प्रैक्टिस करती थी। जब हमें पता चला कि वो अच्छा खेल रही है और आगे जा सकती है तो हमने उसे सपोर्ट करना शुरू किया। उसके रग्बी किट और ट्रेनिंग के लिए बकरियां तक बेचनी पड़ी।

गणेश कुमार कहते हैं- मुझे आसपास के लोगों ने बहुत ताने दिए। कहा- छोटे कपड़ों में बेटी खेल रही है। तुम लोग कुछ कहते क्यों नहीं। दबाव बनाने की कोशिश हुई, लेकिन हमने बेटी का मन देखा और उसे खेलने दिया।

बाड़मेर के भूरटिया गांव के किसान की बेटी सुशीला की रग्बी का इंटरनेशनल खिलाड़ी बनने की कहानी पढ़िए…

यह सुशीला का घर है। आर्थिक हालात ठीक नहीं होने के बावजूद पिता ने उसे खेलने दिया। आज सुशीला इंटरनेशनल खिलाड़ी है।

यह सुशीला का घर है। आर्थिक हालात ठीक नहीं होने के बावजूद पिता ने उसे खेलने दिया। आज सुशीला इंटरनेशनल खिलाड़ी है।

वह हमारी जिद के आगे नहीं झुकी गणेश कुमार कहते हैं- हम छोटे से गांव भूरटिया में रहते हैं। यहां बेटियों का घर से बाहर जाना, गेम खेलना। ऐसी परंपरा नहीं थी। सुशीला की जिद ने इस परंपरा को तोड़ा है। वह हमारी जिद के आगे नहीं झुकी। आज उसने साबित किया है कि लड़कियां भी वो कर सकती हैं जो परिवार लड़कों से आशा रखता है।

तानों से हमें दबाया जाता है पिता बताते हैं- बेटियों को बोझ नहीं समझना चाहिए। देश के सबसे बड़े पद पर भी एक महिला है। हमारे गांव में महिला पीटीआई नहीं है। जब बेटी आगे बढ़ना चाहती है तो आस-पड़ोस वाले ताने मारते हैं। आपकी बेटी हाफ कट में चड्‌डा, टी-शर्ट पहन दौड़ रही है।

तब इनके माता-पिता और दादा-दादी क्या कर रहे हैं। ऐसे तानों से हमें दबा दिया जाता है। लोग बेटियों को बाहर नहीं भेजना चाहते हैं। आज किसान की बेटी इंडिया के लिए खेलेगी।

बोले- बेटी वादा करके गई जीत कर आऊंगी सुशीला के पिता कहते हैं- रग्बी में जब सुशीला का सिलेक्शन हुआ तो सबसे पहली आर्थिक समस्या आड़े आई। सुशीला के दादा जी ने साफ मना कर दिया था कि इन परिस्थितियों में बाहर भेजना और महंगी किट दिलवाना संभव नहीं है। घर की आय भी पशुपालन और खेती से ही होती है। सुशीला रोने लगी और अपनी दादी से कहा कि दादा को मनाओ मैं वादा करती हूं जीत कर आऊंगी। दादा मान गए। हमने बकरियां बेच कर उसके किट और अन्य सामान का इंतजाम किया।

कपड़े की फुटबॉल बना कर खेली सुशीला की दादी किस्तूरी कहती हैं- हमने बकरियां संभालने भेजा तो वहां खेलती थी। फुटबॉल खरीदने के पैसे नहीं थे तो कपड़े की फुटबॉल बनाकर खेली। हमने खेलने से खूब मना किया, लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही। 3 साल से अब खेलते-खेलते इंटरनेशनल तक पहुंच गई।

4 घंटे करती थी प्रैक्टिस सुशील का कोच कौशलाराम विराट का कहना है- सुशील ने अप्रैल 2022 में रग्बी फुटबॉल की शुरुआत की थी। स्कूल में पहले दो घंटे तक प्रैक्टिस करती थी। नेशनल खेलने के बाद सुबह-शाम दो-दो- घंटे प्रैक्टिस करती थी। वहीं रोजाना भूरटिया गांव और घर के बीच डेढ़ किलोमीटर के चार चक्कर दौड़ कर लगाती थी।

13 सितंबर को सुशीला भारत के लिए खेलेगी।

13 सितंबर को सुशीला भारत के लिए खेलेगी।

5 बार नेशनल स्तर पर प्रदर्शन प्रिसिंपल महेश कुमार ने बताया कि सुशीला का रग्बी फुटबॉल टीम में 5 बार राष्ट्रीय स्तर पर सिलेक्शन हुआ। साल 2023- 24 और 2024- 25 में एसजीएफआई नेशनल गेम्स में भाग लिया। एसजीएफआई की ओर से खेलते हुए स्टेट लेवल पर गोल्ड मेडल मिला। नेशनल लेवल पर राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया।

खेलो इंडिया वीमेंस टूर्नामेंट 2024 में कांस्य पदक जीतकर टूर्नामेंट की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनीं। नेशनल लेवल पर ओपन रग्बी फुटबॉल प्रतियोगिता में अंडर-15 और अंडर-17 कैटेगरी में नेशनल स्तर पर राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया। हाल ही में कोलकाता इंडिया टीम कैंप और ट्रेनिंग में हिस्सा लिया।



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